________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रवचन-५
आप और मैं, अपने तो अज्ञानी हैं ही, कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्रसूरिजी परमात्मा के सामने गद्गद् स्वरों में क्या कहते हैं? पढ़ा है उनका वीतराग स्तोत्र? ___ 'क्वाहं पशोरपि पशुः? पशु से, जानवर से भी गया बीता जानवर हूँ मैं!' क्या कह दिया उस महान आचार्य ने? कौन थे वे महापुरुष? जानते हो हेमचन्द्रसूरि को? कलिकाल में सर्वज्ञ के समान परम तेजस्वी ज्ञानी महात्मा पुरुष थे। वे कहते हैं कि 'मैं तो पशु का भी पशु हूँ!' परमात्मा के सामने, परमात्मा की तुलना में उनको अपना व्यक्तित्व पशु का व्यक्तित्व लगा। कितना गहरा आत्मनिरीक्षण होगा उन महापुरुष का?
यदि आप लोग अपने आपको मूर्ख मानते हो, अज्ञानी मानते हो और यहाँ प्रवचन सुनने आते हो, तब तो आपका काम हो जाएगा! आप धर्मश्रवण के अधिकारी बन गए। जिसको अपनी अज्ञानता का भान होता है उसको ज्ञान पाने की जिज्ञासा होती है। जिस मनुष्य को अपनी दरिद्रता का भान होता है, उस मनुष्य को धन पाने की इच्छा होती है। धनप्राप्ति में वह प्रमाद नहीं करेगा, पुरुषार्थ करेगा। जो मनुष्य स्वयं को रोगी मानता है वह निरोगी बनना चाहेगा और सावधानी से दवाई करेगा, उपचार करेगा। आपको यदि धर्मविषयक अज्ञानता का भान हो गया है, तो धर्मविषयक ज्ञान पाने का पुरुषार्थ करेंगे ही।
वह मूर्ख है कि जो अपने आपको ज्ञानी मान बैठा है! अपने आपको बड़ा बुद्धिमान मान बैठा है! ऐसे मूों को धर्म का उपदेश नहीं देना चाहिए । उनको दिये हुए उपदेश का अमृत बह जाएगा, वह ग्रहण नहीं कर पायेगा। जापान के झेन-सम्प्रदाय के धर्मगुरु 'नान-ईन' के पास एक प्राध्यापक पहुँचा। उसने नान-ईन से कहा : ‘पहले चाय पियो, बाद में बात करेंगे।' नान-ईन ने कप में चाय डाली, डालते ही रहे, चाय नीचे गिरने लगी तो उस प्राध्यापक ने कहा : 'चाय नीचे गिर रही है, अब कप में चाय नहीं टिकेगी।' नान-ईन ने बड़ी शान्ति से कहा : 'इसी तरह आप अपनी मान्यताओं से और अनुमानों से इतने भरे हुए हो कि जब तक आप अपने दिमाग का कप खाली नहीं करोगे, तब तक मैं आपको क्या बताऊँ मेरे 'झेन' धर्म के बारे में? आप समझ ही नहीं पायेंगे कुछ! प्रवचन में माला क्यों फेरते हो?
धर्मतत्त्व की जानकारी के दावेदार बहुत हैं संसार में। अपने यहाँ भी ऐसे
For Private And Personal Use Only