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प्रवचन-५
६६ क्षमा करना भगवंत, परन्तु मुझे लगता है कि अभी भी मैं प्रयत्न करूँ... एक बार, बस?'
'करो प्रयत्न नारदजी, वह मरकर उसी नगर के बाहर जो गटर है, जहाँ सारे नगर की गंदगी बहती है, वहाँ सुअर हुआ है। गडुरिया हुआ है।' 'क्या कहते हो भगवान? गटर में सुअर?'
'हाँ, वैषयिक सुखों की गटर ही उसे पसंद है न! दूसरों की दृष्टि में उसका जीवन कितना दु:खमय होता है? परन्तु उस सुअर को तो वहाँ भी सुख लगता है। आप जाइए, ले आइए उसे इधर!'
नारदजी सोच में पड़ गये। भगवान की बात नारदजी को जॅच रही थी, परन्तु फिर भी उस सेठ की एक और मुलाकात करने की इच्छा हुई। नारदजी को कई तरह के विचार आये संसारी जीवों के विषय में। मानवजीवन मिला था सेठ को।
ऐसी कौन-सी गलती कर दी सेठ ने कि जिसके परिणामस्वरूप पशुयोनि में उनको भटकना पड़ रहा है? दुनिया जिसको धर्म कहती है, वैसा धर्म तो वे करते ही थे। क्रियात्मक धर्म तो था उनके पास । हाँ, भगवान के कहने के अनुसार भावात्मक धर्म नहीं था उनमें | उनमें । क्षमा, नम्रता, सरलता, निर्लोभता नहीं होगी। संसार से वे विरक्त नहीं होंगे। उनका हृदय विषयराग और कषायों से भरपूर होगा । खाने-पीने की आसक्ति होगी। अन्यथा ऐसी पशुयोनि में कैसे जन्म होता? कोई बात नहीं, अब भी समझ जायँ तो अच्छा है। ले आऊँ वैकुंठ में...। वैकुंठ-निर्माण स्वयं करना पड़ता है :
'किसी के लाने-ले जाने से वैकुंठ में जाया जा सकता होता तो संसार में कोई जीव नहीं रहता, सब जीव मोक्ष में होते! क्योंकि प्रत्येक तीर्थंकर की यही भावना होती है कि सब जीव मोक्षदशा प्राप्त करें | तीर्थंकरों की शक्ति भी होती है! वे क्यों नहीं ले गये सब जीवों को मोक्ष में? चाहे तीर्थंकर हो या अवतार हो! अल्लाह हो या ईश्वर हो-कोई भी हो, जीवात्मा की प्रबल भावना के बिना कोई उसको मोक्ष में नहीं ले जा सकते, निर्वाण नहीं दिला सकते।
सभा में से : क्या भावना होने मात्र से मोक्ष मिल सकता है? कोई मोक्ष दिला सकता है?
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