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प्रवचन -४
४८
'प्रभो, आप माघ महीने में पधारने की कृपा करें। मेरे लिए इतना कष्ट करें। मैं अवश्य चलूँगा आपके साथ। मुझे तो यह संसार जहर लगता है
जहर... ।'
'अच्छा तो, ठीक है मैं चलता हूँ...' कहकर नारदजी विमान के पास आये और विश्वयात्रा करने चले गये । जीवराज सेठ को शान्ति हुई ! वैकुंठ में जाना नहीं था, परन्तु 'वैकुंठ ही मुझे प्यारा है', ऐसा दुनिया को दिखाना था। क्योंकि जिसको वैकुंठ प्यारा होता है, दुनिया उसको सम्मान की दृष्टि से देखती है, उसकी इज्जत करती है । जीवराज को इसलिए दुनिया की निगाह में धर्मात्मा बनना था। उसको लोगों का सम्मान चाहिए था । आप लोग भी कहते हो न कि 'हमें मोक्ष चाहिए, हमें वैकुंठ में जाना है...।' जाना है वैकुंठ में ? महाविदेह क्षेत्र में से सीमंधरस्वामी किसी देव को भेजे आपके पास और देव आकर कहे : ‘चलो महाविदेह में सीमंधरस्वामी भगवान के पास, वे तुम्हें वैकुंठ में भेज देंगे!' तो देव के साथ तुरंत ही चले जाओगे न ?
चाहना हो उसी की माँग की जाती है :
सभा में से : लेकिन हमें मोक्ष ही माँगना चाहिए न ?
महाराजश्री : माँगने से क्या ? जो चाहते नहीं वह कभी माँगा जाता है ? चाहते हो संसार और माँगते हो मोक्ष ! वाह, अच्छी करी बात ! दुनिया में कभी आपने, जो आप नहीं चाहते वह माँगने गये किसी के पास ? पहले मोक्ष को चाहो, फिर माँगो। चाहते हो मोक्ष को ? मोक्ष में क्या है, क्या नहीं है; वहाँ आत्मा कैसी हो जाती है, क्या करती है; वहाँ कैसा सुख होता है... वगैरह जानते हो? कैसी मूर्खतापूर्ण बात करते हैं लोग? मुझे बड़ा आश्चर्य होता है। जो आत्मा को नहीं जानते वे मोक्ष की बातें करते हैं ! जो मोक्ष के स्वरूप को नहीं जानते वे मोक्ष की बातें करते हैं! क्यों करते हैं जानते हो ? मोक्ष की बातें करनेवालों की दुनिया इज्जत करती है ! 'हम तो मोक्ष में जाने के लिए धर्म करते हैं,' ऐसी बातें करनेवालों को समाज सम्मान की दृष्टि से देखता है।
परन्तु ऐसी ‘बोगस' बातें करनेवालों को जब समाज के लोग सिनेमागृहों में देखते हैं, होटलों में देखते हैं, शराब पीते देखते हैं... अनीति, अन्याय और दुराचार करते देखते हैं; तब क्या होता है ? मोक्ष की बातें करनेवालों के प्रति तिरस्कार हो जाता है। धर्म के प्रति अभाव हो जाता है लोगों को । जिनको मोक्ष का सही ज्ञान नहीं, मोक्ष पाने की कोई चाह नहीं, ऐसे लोगों को दुनिया
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