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प्रवचन-४ जीवराज सेठ का दूसरा वचन :
नारदजी विश्वयात्रा करके लौटे। जब वे वैकुंठ में भगवान के पास गये, भगवान ने पूछा : 'क्यों उस सेठ को ले आये नारदजी?' नारदजी ने कहा : 'भगवंत, उसके लड़के की शादी करने के बाद में आएगा।' भगवान ने कहा : 'नारदजी, शादी के बाद भी नहीं आएगा!' नारदजी ने हिम्मत से कहा : 'भगवंत, संसार में जीव को अपने-अपने व्यवहारों को तो निभाना पड़ता है न! सेठ के हृदय में तो आप ही बसे हो, वह तो अनासक्त भाव से शादी का व्यवहार करेगा! परम भक्त है आपका...।' ___ माघ महीना गया, फाल्गुन आया। नारदजी भगवान का विमान लेकर पहुँच गये वापस सेठजी के पास | सेठजी नारदजी को देख, तुरंत ही दुकान से नीचे उतर गये और एकदम नम्रता से, विनय से नारदजी का सन्मान किया | नारदजी ने कहा : 'सेठ, अब चलो वैकुंठ के लिए, मैं लेने आया हूँ।'
सेठ ने कहा : 'हे उपकारी महापुरुष, आपकी करुणा कितनी है? आप निष्कारण वत्सल हो, मेरे परम श्रद्धेय हो! प्रभो, वैकुंठ में चलने की संपूर्ण भावना है। संसार में मुझे कोई रस नहीं, स्वप्नवत् संसार में...।' ___ 'सेठ, तुम्हारी बात मैंने समझ ली, अब देर मत करो और बैठ जाओ विमान में, चलें वैकुंठ में।'
सेठ ने कहा : 'प्रभो, मैंने घर पर बात की थी कि लड़के की शादी हो गई, तुम्हारी बात मैंने मान ली, अब मैं नारदजी के साथ वैकुंठ जाऊँगा ही।' मेरी बात सुनकर लड़के की माँ ने कहा : 'आप तो मन से वैकुंठ में ही हो। आपके लिए वैकुंठ और घर समान ही है। मेरी यह इच्छा है कि लड़के के वहाँ लड़का हो जाय, इसके बाद आप भले वैकुंठ जायँ । अभी जायेंगे शायद वहाँ वासना जाग्रत हो जाये कि 'मेरे लड़के को लड़का हुआ होगा या नहीं...' तो अच्छा नहीं। एक साल रुक जाइए... ___ नारदजी सेठ की बात सुनकर विचार में पड़ गये। उन्होंने सेठ से पूछा : 'फिर आपने क्या निर्णय किया?'
सेठ ने कहा : 'महर्षि, जिनके साथ जीवन बिताया, उनकी इच्छा को कुचलकर अभी वैकुंठ में चलना मुझे उचित नहीं लगा। हाँ, मुझे तो कोई राग नहीं है। उनके लिए एक वर्ष यहाँ रुक जाऊँ तो फिर किसी का मन दुःखी नहीं होगा। आप कृपा करके एक वर्ष के बाद पधारें, तो आपका उपकार कभी नहीं भूलूँगा।'
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