________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
४3
प्रवचन-४
धर्म की प्रक्रियाएँ दो प्रकार की होती हैं : एक प्रक्रिया होतीहै पुण्यकर्म के बंध की और दूसरी प्रक्रिया होती है पापकर्मों को नष्ट करने की। पुण्यकर्म से भौतिक सुख-सामग्री मिलती च है, पापकर्मों को नष्ट करने से आत्मगुणों का आविर्भाव होता है! धर्म का मर्म समझनेवाला आदमी कभी भी भौतिक सुखों के पीछे पागल नहीं होगा। वह भोगी होगा, पर भोगदृष्टिवाला या भोगासक्त नहीं होगा। योगगदृष्टि खुले बिना धर्मतत्व नहीं समझा जा सकता! भोगदृष्टिवाला जीव धर्मक्रियाएँ करता है, पर उसे मोक्ष नहीं मिलेगा...क्योंकि वह चाहता ही नहीं! मोक्ष को जाने बिना मोक्ष अच्छा लग सकता है क्या? मोक्ष पसंद आए बिना मोक्ष माँगा जा सकता है क्या? आदमी को जो पसंद होता है, वही माँगता है। जो पसंद नहीं, उसे वह माँगता नहीं है।
आठ कर्मों के क्षय से आत्मा में आठ अक्षय गुण प्रकट होते - हैं। जानते हो आत्मा के उन अद्भुत गुणों को?
RE प्रवचन : ४ Lege
एक हजार चारसो चवालीस धर्मग्रन्थों के रचयिता महान आचार्यश्री हरिभद्रसूरिजी धर्म का प्रभाव बताते हुए 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ में फरमाते हैं :
धनदो धनार्थिनां प्रोक्तः कामिनां सर्वकामदः ।
धर्म एवापवर्गस्य पारम्पर्येण साधकः ।। 'कोई धन-संपत्ति को चाहता है, धर्म उसे धन-संपत्ति देता है। कोई वैषयिक सुखभोग चाहता है, धर्म उसे वैषयिक सुखभोग देता है। कोई स्वर्ग चाहता है, उसे स्वर्ग देता है और कोई मोक्ष माँगता है, तो उसे मोक्ष देता है।' ___ पर महानुभाव, धर्म को जादू मत समझ लेना! यह बात कोई जादूगरी की बात नहीं है। यह बात सुनकर आप ऐसा मत समझ लेना कि 'हम धर्म के पास जाकर धर्म से प्रार्थना करें कि 'मुझे लाख रूपया चाहिए, मुझे दे दो! मुझे मेरी
For Private And Personal Use Only