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प्रवचन-४ कैसी भी दो, रोग जल्दी दूर होना चाहिए!' ऐसा ही कहते हो न? फिर 'रिएक्शन' प्रतिक्रिया कैसी भी आए! सुख आपको तत्काल चाहिए न? दुःखमुक्ति भी शीघ्र चाहिए! आपको लगे कि 'यह सुख सच बोलने से शीघ्र नहीं मिलेगा, झूठ बोलने से मिल जाएगा...' तो क्या करोगे? झूठ ही बोलोगे न? आपको लगे कि 'प्रामाणिकता से-नीति से यह धंधा करने से ज्यादा मुनाफा नहीं होगा, जल्दी लखपति नहीं बन पायेंगे, अनीति करने से काम जल्दी बन जाएगा, तो क्या करोगे? अनीति न? क्योंकि आपको धनवान जल्दी बनना है! आपको धन शीघ्र चाहिए, भोगसुख शीघ्र चाहिए, स्वर्ग शीघ्र चाहिए और मोक्ष भी शीघ्र चाहिए? मेरे खयाल से मोक्ष पाने की इतनी जल्दी नहीं होगी?
धर्म सुख देता है, परन्तु अपनी जल्दबाजी काम नहीं आएगी! सुख देने का एक लम्बा 'प्रोसीजर' होता है धर्म का! एक लम्बी प्रक्रिया में से गुजरना पड़ता है। आज अपने पास जो भी सुख हैं, सब धर्म से ही मिले हैं। अपन एक लम्बी प्रक्रिया से गुजरे हैं! जन्म-जन्मान्तरों की बातें अपने को याद नहीं रहतीं, परन्तु अपने अनेक जन्मों में धर्म की उस प्रक्रिया में से गुजरे हैं, तभी आज अपने पास कुछ सुख हैं | सुख के साधन हैं | सुख का अनुभव है। आज इस जीवन में पुनः धर्म की उस प्रक्रिया को करेंगे, तो आगे के जीवन में सुख प्राप्त होगा। धर्म की दो प्रक्रियाएँ हैं :
धर्म की एक प्रक्रिया है पुण्यकर्मों के बंध की, और दूसरी प्रक्रिया है पापकर्मों के क्षय की। पुण्यकर्म के बंध से भौतिक सुख मिलते हैं, और पापकर्मों के क्षय से आत्मिक सुख मिलता है। धर्म से तात्कालिक पापकर्मों का क्षय हो सकता है, इसलिए आत्मिक सुख तो शीघ्र मिल सकता है। परन्तु पुण्यकर्म जो बंधते हैं, वे बंधे हुए पुण्यकर्म जब उदय में आयेंगे, तब भौतिक सुख मिलता है। आज जो पुण्यकर्म बंधा धर्म के माध्यम से, वह पुण्यकर्म तात्कालिक उदय में नही आ सकता है। ऐसा नियम है। अमुक निश्चित समय के बाद ही उदय में आता है। जब तक वह पुण्यकर्म उदय में नहीं आए तब तक धैर्य रखना होगा! अधीर बनने से काम नहीं चलेगा। संभव है कि इस जीवन में वह पुण्यकर्म उदय में न भी आए | आएगा जरूर उदय में और शुभ फल भी देगा, परन्तु दूसरे भवों में! यह भी जरूरी नहीं कि आगे आनेवाले दूसरे भव में ही फल मिल जायँ! इस भव में बाँधा हुआ कर्म पच्चीस भव के बाद भी उदय में आए |
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