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प्रवचन-३
और 'कालेजों' में भेजकर! बन गए अभिमान के पुतले । अभिमानी में नम्रता कहाँ से आएगी? नम्रता के बिना विनय कैसे करेगा? विनय के बिना धर्म कैसे होगा? विनय की शिक्षा बाल्यकाल से मनुष्य को मिलनी चाहिए। विनय तो नींव है :
माता-पिता का विनय करनेवाला बच्चा स्कूल में अध्यापकों का भी विनय करेगा। समाज में बड़ों का विनय करेगा। धर्मस्थान में साधुपुरुषों का विनय करेगा और मंदिर में परमात्मा का विनय करेगा। विनय का अभ्यास बचपन से होना चाहिए | जीवराज सेठ ने नारदजी का कैसा विनय किया? कितना विवेक? नारदजी प्रसन्न हो गए।
नारदजी ने वापस वैकुंठ जाने का सोचा | जीवराज सेठ को वैकुंठ में प्रवेश कराने का निर्णय कर, नारदजी विमान में बैठे और विमान वैकुंठ की तरफ उड़ा | जीवराज सेठ विमान को जाते देखते रहे और गहरे विचार में डूब गए।
नारदजी वैकुंठ में पहुंच गए। भगवान के पास गए। भगवान ने पूछा : 'कहो नारदजी, क्या खबर लाए हो मृत्युलोक की?'
नारदजी का मुँह चढ़ा हुआ था। कुछ क्षण मौन रहे, फिर बोले : 'भगवान, मुझे मालूम नहीं था कि आपके राज्य में इतना अन्धेर होगा?'
नारदजी ने जोरदार 'बम्बार्डमेन्ट' कर दिया। भगवान भी क्षणभर स्तब्ध रह गए। परन्तु मुख पर स्मित लाकर भगवान ने पूछा : 'ऐसी क्या बात है देवर्षि?'
'भगवान, आप अन्तर्यामी होकर मुझसे क्या पूछते हो? जब पूछते ही हो तो बताता हूँ। अभी मैं मृत्युलोक में गया था, उस फलाँ शहर को देखने नीचे उतरा | वहाँ के जीवराज सेठ को मैंने देखा । भगवान कैसा वह भक्त जीव है, दिन-रात आपका नाम ही जपता है, ललाट में कितने चन्दन के तिलक करता है, पूजा-पाठ करता है... अहा, कैसा उसका विनय और विवेक! कितनी उसकी वैकुंठ में आने की तमन्ना प्रभो! आप नाराज मत होना, परन्तु आपको ऐसे भक्तों की कोई परवाह नहीं है! आप पापियों को पावन करेंगे, ऐसे भक्तों की...' नारदजी जोश में बोल रहे थे। भगवान ने आँखें मूंदी और उन्होंने शहर को देखा | उस मैदान को देखा, सेठ की दुकान देखी और जीवराज सेठ को देखा। बाहर देखा, भीतर से देखा।
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