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प्रवचन-३ ही पड़ेगा! पापों का त्याग करने की तैयारी है? हिंसा, असत्य, चोरी, दुराचार, परिग्रह वगैरह पापों का त्याग करने को तत्पर हो न?
सभा में से : संसार में पाप तो करने ही पड़ते हैं...।
महाराजश्री : कितने पाप करने पड़ते हैं? जितने पाप अनिवार्य हैं, उतने ही करते हो? ज्यादा पाप नहीं करते हो न? निष्प्रयोजन पाप नहीं करते हो न? टटोलो अन्तरात्मा को | पूछो अपनी आत्मा को कि 'आत्मन्, तुझे पाप प्यारे नहीं लगते हैं न? पाप करने जैसे नहीं हैं-यह बात सतत स्मृति में रहती है न? पाप करने पर दुःख होता है न? 'अररर...मैंने कितने सारे पाप कर डाले? तीव्र देवना होती है? पूछते हो कभी अन्तरात्मा को? पूछो तो जवाब मिले न! कभी पूछते ही नहीं! क्योंकि पाप करने में मज़ा जो आ रहा है! ध्यान रखो, जब तक पापों के प्रति घृणा नहीं होगी, तिरस्कार पैदा नहीं होगा, तब तक धर्म के प्रति प्रेम नहीं होगा, श्रद्धा नहीं होगी। ___ मै आपको पूछता हूँ कि आप किस दृष्टि से पाप करते हो? क्यों पाप करते हो? सुख पाने के लिए न? 'झूठ बोलने से पैसा मिलेगा'-इस मान्यता से झूठ बोलते हो न? चोरी करने से ज्यादा धन मिलेगा-इस मान्यता से चोरी करते हो न? क्या झूठ बोलना और चोरी करना पाप नहीं है? मानते हो न पाप है? अब कहिए-पाप करने से सुख मिले या दुःख मिले? कर्म विज्ञान का सनातन सिद्धान्त :
सभा में से : पाप से तो दुःख ही मिलता है!
महाराजश्री : तो दुःख पाने के लिए पाप करते हो? कितनी घोर अज्ञानता है? चाहिए सुख और करते हैं पाप! __सभा में से : पाप करते हैं और सुख मिलता है-ऐसा प्रत्यक्ष देखते हैंइसलिए सुख पाने को पाप करने लगते हैं!
महाराजश्री : अच्छा, ऐसा कार्य-कारण भाव देखने को मिला, इसलिए पापाचरण नहीं छोड़ते-यह कहना है न?
सभा में से : जी हाँ! महाराजश्री : सच बोलते हो दुकान पर बैठकर, तो कम रूपये कमाते हो और झूठ बोलते हो तो ज्यादा कमाते हो-ऐसा आपका अनुभव है। ऐसा अनुभव सभी का है? सब झूठ बोलने वाले ज्यादा कमाई करते हैं? सब चोरी
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