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प्रवचन- ३
३०
धर्म का फल बताया जा रहा है। धर्म का फल - इहलौकिक और पारलौकिक, दोनों फल अच्छे हैं। इहलौकिक फल में धनप्राप्ति और भोगसुखों की प्राप्ति है । पारलौकिक फल में स्वर्ग प्राप्ति और मोक्ष प्राप्ति है।
लालच या भय नहीं, पर निरी वास्तविकता :
प्रश्न : मनुष्य को धार्मिक बनाने की भावना से क्या स्वर्ग और नरक की कल्पना नहीं की गई है ? धार्मिक बनाने की भावना अच्छी है, परन्तु स्वर्ग की लालच और नरक का भय बताना कहाँ तक उचित है ?
उत्तर : आप अपने बच्चे को डॉक्टर, वकील या 'एन्जिनियर' बनाना चाहते हो। लड़का पढ़ना ही नहीं चाहता। कॉलेज में ही नहीं जाना चाहता । आप क्या कहते हो उसको ? 'इस जमाने में नहीं पढ़ेगा तो भूखा मरेगा । कोई चपरासी की भी नौकरी नहीं मिलेगी । भटक जाएगा दुनिया में । मेरा कहा मान और पढ़ाई कर।' क्या आपने लड़के को भूखा मरने का भय बताया? या वास्तविकता बताई? आप और भी ज्यादा कहते हो : 'अच्छी पढ़ाई करेगा तो अच्छी सर्विस मिलेगी, अच्छा व्यवसाय कर सकेगा, पैसा कमाएगा, बंगला बनेगा, गाड़ी-कार आएगी...।' कहते हो न ? क्या आप लालच कहोगे इस बात को? या वास्तविकता ?
प्रश्न : ऐसा तो हम देखते हैं हमारे सामने, इसलिए वास्तविक ही है । परन्तु आप जो स्वर्ग और नरक की बात करते हैं, हम नहीं देख पाते इसलिए संदेह होता है।
उत्तर : ऐसा क्यों मान लेना चाहिए कि हम जो नहीं देख पाते हैं, उसको कोई भी नहीं देख पाता है ? हम जो नहीं देख सकते या नहीं समझ सकते, वह हो ही नहीं सकता ऐसा क्यों मान लेते हो ? स्वर्ग को और नरक को हम नहीं देख पाते हैं, इससे क्या ? स्वर्ग-नरक को प्रत्यक्ष देखनेवाले भी हैं! देखने की विशिष्ट दृष्टि चाहिए । पानी के बिन्दु में आपने चलते-दौड़ते जीव देखे हैं? छाने हु पानी में? आप अभी देखने जाओगे तो नहीं दिखेंगे, परन्तु ‘माइक्रोस्कोप’ से देखनेवालों को हजारों जीव दिखाई देंगे! अनछाने पानी में ज्यादा दिखते हैं जीव, छाने हुए पानी में कम दिखते हैं। मैंने स्वयं 'माइक्रोस्कोप' से देखा है। वैसे ही अवधिज्ञानी - केवलज्ञानी आत्मा स्वर्ग-नरक को प्रत्यक्ष देख सकती है। ऐसे ज्ञानी पुरुषों ने देखकर बताया है दुनिया को । स्वर्ग-नरक को देखा इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी देखा कि कौन-सा जीव स्वर्ग में जाता है,
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