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मनुष्य के कषायों और कुकृत्यों से, काल पाकर वे अस्थिक ग्राम हो जाते हैं । हाड़-पिंजरों के जंगल और स्मशान हो जाते हैं । हाय रे, कषायक्लिष्ट मनुष्य की नियति । - 'मेरी आँखें खुलीं, तो फिर से उत्पल का स्वर सुनाई पड़ा : ____ 'अज्ञानी और अन्ध श्रद्धालु ग्रामवासी इस दुर्दैव का रहस्य गाँव-गाँव के दैवज्ञों से पूछते फिरे । सत्य को दैवज्ञ क्या जानें । उन्होंने अटकल पंचू मनगढन्त कारण बताये । ऐसे कर्म-काण्ड और विधि-विधान बताये, जिससे उनकी उदरपूर्ति हो सके । हर चौरे, देवल, वृक्ष, पत्थर के देव हमारे लोगों ने पूजे-पधराये । पर महामारी का प्रकोप बढ़ता ही गया । तब अधिकांश लोग यह प्रदेश छोड़कर परदेश चले गये । वहाँ भी यमदूत की तरह पहुँच कर, यक्ष ने चुनचुन कर हमारे ग्रामजनों को महामारी का ग्रास बनाया । तब ग्रामलोक ने मिलकर विचार किया : जान पड़ता है अनजान में हमने किसी देव, दैत्य, यक्ष या क्षेत्रपाल को कुपित किया है । सो अपने ही जनपद में लौटकर उसे प्रसन्न करने का उपाय करें । अतः लौटकर हमारे पूर्वज फिर अपने ग्राम आये ।
'तब एक दिन सब ने स्नान से पवित्र हो कर, उत्तरासंग धारण कर, श्वेत उत्तरीय परिधान किया। केश खुले छोड़ हाथों में पूजा-द्रव्य और धूप-दीप लिए आबालवृद्ध-वनिता, हर चत्वर, त्रिक, उद्यान, वनखण्ड, भूतगृह, खंडहर में बलि उड़ाते हुए, दीन वदन, मुख ऊँचा किये, जाने-अनजाने सारे ही देवी-देवता, असुर, यक्ष, राक्षस,किन्नरों से प्रार्थना करते घूम चले। - ‘कि हे देवताओ, यदि असावधानी में हमसे आपकी कोई अवमानना हुई हो तो हमें निर्बल, क्षुद्र, अज्ञानी जान,हमारे अपराधों को क्षमा करें । हमें जीवनदान करें ।
'तब लोकजनों की आर्त वाणी के उत्तर में अन्तरिक्ष से यक्ष बोला : ओरे दृष्ट, दुर्भावी मानवों, तुम घोर कृतघ्न, स्वार्थी और पापात्मा हो । पूर्व जन्म में मेरे पशु शरीर वृषभ का जीवितव्य तक तुम हड़प गये । वह वृषभ मृत्यु पा कर अब मैं शूलपाणि यक्ष हुआ हूँ। और उसी पूर्व बैर से क्षुब्ध हो कर मैं तुम्हारी सारी जाति से बदला ले रहा हूँ। • • •पर अब तुम दीनदयनीय होकर प्रार्थी हुए हो तो सुनो : इस अस्थियों के स्तूप का चबूतरा चुनवा कर तुम उस पर मेरे आवास के लिए एक मन्दिर निर्माण करो । और उसमें मेरे पूर्व जन्म के वृषभ-रूप की मूर्ति स्थापित कर नित्य, उसका पूजन-आराधना करो । तभी मेरी क्षुब्ध आत्मा शान्त होगी, और तुम्हारा वाण हो सकेगा ।
'सो हे भन्ते, यह सामने का मन्दिर हमारे उसी प्रायश्चित का प्रतीक है । इन्द्रशर्मा नामक एक ब्राह्मण को भारी वेतन देकर यहां पुजारी नियुक्त
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