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एक लौ-सी भीतर अकम्प जल रही थी, और यही लगता था, कि जब तुम मेरे द्वार पर आकर भिक्षा का पाणिपात्र पसार दोगे, तो मुझे अचूक पता चल जायेगा । और मैं क्षण मात्र में दौड़ी आकर तुम्हारे समक्ष समर्पित हो रहूँगी । वह प्रतीक्षा अन्तहीन ज्वाला हो कर रह गई । पर तुम : नहीं आये । जान पड़ता है, मन की चाह के चरम सपने को तोड़ देना ही तुम्हारा एकमात्र दस्तूर है ।
फिर भी एक दुर्निवार चुटीले मान की कुण्डलिनी में अपने को कसती ही चली गई थी । यही लगता था, लिवाने आये हो तो राजद्वार पर भी द्वारापेक्षण क्यों करूँ ? मेरे सतखण्डे महल की सीढ़ियाँ चढ़ कर तुम्हें ही मेरे कक्ष के द्वार पर आना होगा। तुम आकर दस्तक दोगे, तभी सम्राज्ञी चेलना के किंवाड़ खुल सकेंगे। तुम्हारी वह अनठोंकी दस्तक हृदय की धड़कनें भले ही हो रही, पर मेरे रत्नों के किंवाड़ों पर वह कभी न सुनाई पड़ी । यह मानभंग रह-रह कर अपनी छाती पर एक घूंरो-सा अनुभव होता था । हर क्षण उसके स्मरण से मेरे हृदय की ऐंठन बढ़ती ही जाती थी, और कोई जैसे उसे ठोकर मार कर, एक बिजली की-सी छुरी से पर्त-दर-पर्त काटता चला जा रहा था ।
एक दिन सोचा कि किस बिरते पर ऐसा अभिमान किये बैठी हूँ ? शायद यह भूल नहीं सकी हूँ कि सम्राज्ञी हूँ, और आर्यावर्त की आसमुद्र पृथ्वी जिस विजेता की तलवार के तेज से थरथरा रही है, उसकी पट्टमहिषी हूँ। · · · पर अपने जाने किसी सम्राटत्व से तुम्हें मापने की भूल मुझ से कैसे हो सकती थी। पर अपने भीतर की बद्धमूल हो गयी सम्राज्ञी की सत्ता के आधार को जरूर ही कहीं अवचेतन में कस कर पकड़े हुए थी । किन्तु मगधेश्वर की दस्तक पर भी न खुलने वाले किंवाड़ों के कक्ष में क्या केवल मगधेश्वरी ही बन्दिनी हुई पड़ी थी ? अपने ही आपे के सिवाय, कौन-सा सम्राट् और साम्राज्य मुझे इस क़दर विवश कर सकता था ?
छीलती ही चली गई थी अपने को, और अन्ततः पाया था, कि साम्राज्य, सत्ता, महल, कक्ष, किंवाड़, रत्न- शैया और सारे ऐश्वर्य पीछे छूट गये हैं । केवल अधर के पलंग पर एक निराधार नंगी लपट छटपटा रही है ! कितना निष्ठुर है उसका स्वामी, जो एक दिन उसे आकर उजाल गया था, पर उसके बाद उसने स्वप्न में भी मुड़ कर फिर उसकी सुध नहीं ली। उसी के बल पर तो अपने अन्तर-राज्य की एकाकिनी सम्राज्ञी बनी बैठी हूँ । पर नहीं, मेरा वह मान भी तुम्हें कुबूल न हो सका । मेरा वह स्वप्न भी तुम्हें झटक कर तोड़ देने लायक ही लगा । नारी के उस आखिरी अरमान का भी तुमने मजाक ही उड़ा दिया। मेरे नारीत्व तक से मुझे वंचित किये बिना जैसे
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