Book Title: Anuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 02
Author(s): Virendrakumar Jain
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

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Page 350
________________ ३४० जाने कौन मंजरियों की बाँहें, मुझे उन रमालवनों की गहराइयों में खींचती चली गई। कामिनी के पदाघात से फूले अशोक वृक्ष ने मुझे कुंकूमकेशर से रंग दिया। सहकार लता की किसलंय हथेलियों ने मेरे अंग-अंग को अबीर-गुलाल से नहला दिया । ..."टन्ननन !' पृथ्वी के सागर-वलय पर से उठते लाल कमलों के विराट् धनुष की टंकार ! .. अलक्ष्य में से सनसनाकर आता एक कुसुम-बाण मेरे हृदयदेश की कोर पर आ कर स्तम्भित खड़ा रह गया। "और सहसा ही, हजारों रंगारंग फूलबाणों की वर्षा। अधर में मेरे चारों ओर स्तम्भित उन तीरों ने मेरी रक्त-तरंगों पर इन्द्रधनुष का एक तरल वितान छा दिया। ... मैं तुम्हारे मोह-राज्य के मर्मदेश में आ पहुँचा, कामदेव । कहां हो तुम? दिखाई नहीं पड़ते! अलख स्पर्श के उन्मादन पुष्पाघातों से सारी सृष्टि की चेतना को विकल-घायल कर देते हो तुम । अनंगदेवता, तुम्हारी चिरन्तन् गोपनता का रहस्योद्घाटन करने के लिये, क्या मुझे भी विदेह हो जाना पड़ेगा? समझ रहा हूँ, स्वयम् अनंग हुए बिना, अनंग का मर्मभेद सम्भव नहीं ! ...देखो न, वही तो हो गया हूँ। कि तुम्हारे फूलों के तीर मेरे चारों ओर अधर में थमे रह गये हैं। तुम भी अनंग, मैं भी अनंग । नंग से अनंग होने में देर ही कितनी लगती है। अन्तर-मुहूर्त मात्र । तुम्हारे तीर बींधे तो किसे बींधे ? ' मैं आप ही अपना स्पर्श हो गया हूँ। मैं आप ही अपना रंग, रूप, गन्ध ध्वनि हो गया हूँ। तुम्हारे मोहन राज्य का आभारी हूँ, ओ शरीरों के अदृश्यमान शरीर ! मैं तो शरीर लेकर आया हूँ तुम्हारे लोक में ।"पर तुम्हारे कुसुमबाणों के मृदु आघातों ने विपल मात्र में ही मुझे अशरीर कर दिया। आघात से परे का अपना अव्याबाध मार्दव मैं पा गया। कहीं दूर के परिप्रेक्ष्य में द्राक्ष-लताओं से लिपटे सेववन, नारंगीवन, जम्बूवन, नीम्बूवन, धरा चूमते पीत आमों से लदे अम्बावन । उनकी अज्ञात गोपनता में से फूटती सीत्कार-ध्वनि । परिरम्भणाकुल रति की कातर आह, उच्छवास । शचि और इन्द्र की विलास-शैया का नकुर-शिंजन । "कुन्द फूलों के वातायन में विदेह-क्षेत्र की कुमारिका। उसका विव्हल केशाविल वक्ष-निवेदन । कैलाश की दो गम्फित हिम चड़ाएँ । माणिक्य की खिड़की पर बेला फूलों से लचकती मावलिका का सन्ध्या भिसार । मातंग-विमोहिनी वीणा की सुरावलियों पर उदयन और वासवदत्ता की मिलन-शैया । लाट देश की सुन्दरी के बिपुल कुन्तलों में से घिरता मोहगन्धी अन्धकार । केरलसुन्दरी के रोमांचनों से उन्मादित कदलीवन और मलयवन । उनके स्विग्ध अन्तःपुरों में अभिसार । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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