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ब्रह्मांड है। जान, कि चरम परिप्रेक्ष्य में उसके साथ मेरा क्या सम्बन्ध
उस वसुन्धरा की कातर निवेदनाकुल पुकार को सुन रहा हूँ :
'मेरे वत्स, मेरे वल्लभ, कहाँ चले ? मेरा सत्व चूस कर, मुझे निःसत्व, निःसार, निष्फल कह कर, लोकाग्र के किस सिद्धालय में आरूढ़ होना चाहते हो ? भ्रांति हुई है तुम्हें, कि मैं सीमित हूँ, भंगुर हूँ, और चुक गई हूँ। चुक गये हो तुम, मैं नहीं चुकी ! चुक गई है तुम्हारी सामर्थ्य, तुम्हारा ओजस्, मेरे रजस् की रक्तधारा तो अनाद्यन्त काल में अस्खलित प्रवाहित है। महाकाल के प्रवाह में तुम जैसे असंख्य तीर्थंकर मेरे गर्भ से उठे, और मेरा ही योनिवेध कर सिद्धालय के चन्द्रार्ध पर आरूढ़ हो गये। . .
‘पर मेरे ही एक अखण्ड वक्षमण्डल के दो चन्द्राों को भिन्न, और विरोधी समझने की भ्रान्ति में वे रहे । मेरे ही एक स्तन पर पिछला पग धर कर, अगला पग मेरे दूसरे वक्षार्ध की चड़ा पर धरने को ही उन्होंने मोक्षारोहण मान लिया ।'
___ 'तुम्हारी इस बाल-लीला पर तुम्हारी माँ को गर्व ही हो सकता है। ओ योगीश्वरो, ओ तीर्थंकरो, तुम्हारा यह लीला-खेल ही तो उसकी कृतार्थता है। पर महावीर, तुम्हें इससे आगे का खेल सिखाना चाहती हूँ। यही कि एक बारगी ही अपने ओष्ठाधरों से मेरे दोनों स्तनों को पियो और जानो कि जीवन और मुक्ति, भोग और योग एक ही अखण्ड सत्ता-माँ की दो करवटें हैं। उनमें प्रवाहित एक ही चैतन्य पयस् के दो स्रोत हैं।
. . अहं-स्वार्थ प्रमत्त मनुप्य ने इतिहास के महाप्रवाह में बार-बार अपनी हिसक वासना से माँ के उस अखण्ड वक्ष-मंडल को क्षत-विक्षत और खंडित किया है। उस पर अपना एकान्त अधिकार स्थापित करना चाहा है। हिंसा और परिग्रह की इस मूर्छान्ध रात्रि में, बार-बार तुम्हारी इस एकमेव माँ-वल्लभा पर बलात्कारअत्याचार, छेदन-भेदन, प्रहार-व्यभिचार हुए हैं । तुम सब भले ही पथ-भ्रष्ट, विभाजित, खंडित, व्यभिचरित, स्खलित हुए होंगे । पर तुम्हारी यह माँ तो तुम्हारे उन सारे आघातों तले भी अव्यभिचरित, अविक्षत तुम्हारी सती ही रही है।'
_ 'महावीर, मुझे पूर्ण लो, मुझे पूर्ण जानो, मुझे अविकल उत्संगित करो, मुझे पियो अपने में समूची और जानो, कि तुम चुक गये हो. • “या मैं चुक गयी हूँ. . . ? जानो, कि तुम सान्त हो, या मैं सान्त हूँ ? लो· · ·लो · · · लो· · ·लो महावीर' . . !'
__ और मैंने पाया कि मेरा कायोत्सर्ग भंग हुआ है। मेरा पर्यकासन डोला है। और गोदोहन मुद्रा में, जानु पर जानु धारे, और मुट्ठी पर मुट्ठी
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