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के ये सारे रूपाकार प्रतिक्षण विनाश से ग्रस्त हैं। जो रूप, जो आकार, जो चेहरा पिछले क्षण सामने था, वही अगले क्षण नहीं है। हर आकार, हर चेहरा अपने को धोखा देता चला जा रहा है। अपना ही यह शरीर, यह चेहरा अपना नहीं हैं, अपने वश में नहीं है। एक विभ्राट अनित्यत्व में ही यह सारा खेल चल रहा है। ___ याद आ रहे हैं, बेशुमार परिचित आत्मीय चेहरे । जाने कितनी व्यक्तियों, वस्तुओं के समास से बने महल, मकान, मुक़ाम, जिनमें हम अपना घर खोजते हैं, जिनमें लौट कर विराम-विश्राम पाने की भ्रांति में होते हैं। पर वे सब अपने ही साथ घर पर नहीं हैं, एक मुक़ाम पर नहीं हैं। वे प्रतिक्षण परिवर्तमान् हैं। अपनी किसी एकमेव इयत्ता से वे स्वयम् ही अनजान हैं। उनमें घर, सुरक्षा या आश्वासन कैसे पाया जा सकता है? जो घर स्वयम् ही अपना नहीं है, अपने में नहीं है, उसमें अपने लिये घर कैसे पाया जा सकता है ?
याद आ रहा है अपना वह बालक, वह किशोर, जो खेलते-खेलते अचानक अटक जाता था। खेल से उसका मन उचट जाता था। खेल से छिटक कर वह बाहर खड़ा हो जाता था। खेल में आनन्द लेना उसके लिये अशक्य हो जाता था।" सो उससे पीठ फेर कर, उदास मुंह लटकाये, वह दिशाहीन राह पर भाग खड़ा होता था। और वह मन ही मन कांप उठता था : '.."आह, खेल, जो एक दिन अचानक रुक जायेगा। खेल के साथी, जो अभी हैं, वे कभी न कभी बिछुड़ जायेंगे, और फिर कभी न दिखायी पड़ेंगे। और याद आता है हिरण्यवती पार का वह सल्लकी-वन, वह खेल का प्रांगण, जो अब सूना, उदास, नीरव पड़ा होगा। खेल जो अभी खेला है, वह फिर नहीं लौटेगा। वही लड़के-लड़कियां नहीं लौटेंगे, जो कल खेल में साथ थे।...'
नन्द्यावर्त में नव-आयोजित सरस्वती-भवन में कभी कुछ सीखने या करने को जी न चाहा । वातायन और गेलरी पर खड़े हो कर, बादलों में उठते नवनवीन महलों की जादुई भीतरिमाओं में अपने स्वप्न का सौन्दर्य खोजता था, अपना मनचाहा चेहरा और संगी टोहता था। और देखते-देखते पाता था, कि नवनव्य महलों की वह सौन्दर्य-माया जाने । कहाँ तिरोहित हो गयी है। "नील शून्य के अथाह में अकेला छूट गया हूँ। नन्द्यावर्त की वह गैलरी मानो वहाँ से कट कर, जाने किसी अज्ञात तट के कोहरे में विलुप्त हो गई है । कोई घर कहीं पीछे नहीं छूटा है, जहाँ लौटा जा सके । ____ "ठीक आँख के सामने सिरा जाते अनेक माता-पिता देखता था। कितनी मांओं की ममताली ऊष्म गोदियाँ जल-बुबुद् की तरह विलीन होती दीखती थीं। तब अपनी ही माँ की वे कमनीय सुन्दर भरी-भरी बाँहें, उसकी वह अथाह गोद, उसमें गोपित वह सुरक्षा और शरण सब जैसे बर्फ के निर्जन निचाट, सपाट
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