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तुम्हें चैन नहीं, ओ अर्द्धनारीश्वर ! मानो कि तुम्हारी नग्नअग्नि-शलाका से योनिभेद झेले बिना, कोई नारी तुम्हारी अर्द्धांगिनी नहीं हो सकती ।
आखिर हार गई अपना समूचा आपा । इस बीच टपकाये अपने सारे आँसुओं की पोटली अपनी शैया पर फेंक कर, मानों अन्तिम रूप से सम्राज्ञी अपनी रमण - शैया से नीचे उतर आयी । उस सेज पर चेलना की भुवन मोहिनी, काया का ताबूत भले ही छूटा हो ।
• अपने टूटे स्वप्न के लहूलुहान टुकड़े और उमड़ती आँखें ले कर, 'इनके' साथ नालन्द के चैत्य- उपवन में तुम्हारे निकट आने को निकल पड़ी । 'इनके' बहुत नाराज होने पर भी रथ पर चढ़कर आना स्वीकार न कर सकी थी। पैर-पैदल चल कर ही आयी थी, और उस राह की धूल के कण-कण से ईर्ष्या करती आई थी, जिस पर तुम उन दिनों विचर रहे थे । मन ही मन उस धूल में मिल कर, तिल-तिल मिटती चली गई थी, फिर भी यह अभागी काया निःशेष न हो सकी थी। तुम्हारे श्रीचरणों तक जो उसे पहुँचना था । उनकी रज हुए बिना इससे छूट पाना कैसे सम्भव था ।
दूर से ही तुम कायोत्सर्ग मुद्रा में, नग्न तेज की तलवार से खड़े दिखायी पड़े। उस तेज को सहन न कर सकी। आँखें नीची हो गईं। धरती में धँसकती-सी किसी तरह लड़खड़ाते पैरों तुम्हारी ओर बढ़ती चली आई | अर्धोन्मीलित आँखों में केवल तुम्हारे चरणों की ज्योतिर्मय उँगलियाँ श्रेणिबद्ध झलक रहीं थीं । उन्हीं के सहारे तुम तक पहुँच कर, पाद प्रान्त की धूलि में लट गई । अग्नि के उन कमलों को छूने का साहस न कर सकी। फिर भी उन्हें आंचल में बटोर लेने को जी चाहा । पर देखा, कि आँचल ही खिचकर उन ज्वाला की पंखुरियों में लीन हो गया है । ' इस तरह अनावरण होती चली गई, कि अपने नारीत्व और उसकी लज्जा का बोध ही समाप्त हो गया ।
मगधेश्वर तुम्हारे सम्मुख आ कर नमित हुए या नहीं, यह देखने का भान ही कहाँ रह गया था। किसी तरह सम्हल कर जानुओं के बल जब तुम्हारे चरण- प्रान्तर में उपविष्ट हुई, तो देखा कि ये भी मेरे साथ अटूट यंत्रवत्, उसी तरह बैठे हैं। देखा कि बालक की तरह निपट अज्ञानी और किंकर्तव्यविमूढ़ हो गये है । भृकुटियों का मान अपनी जगह अविचल था, पर आँखें उनकी विस्मय से अवाक् और स्तब्ध हो कर रह गई थीं। एक टक तुम्हें निहार रहे थे, और मानों प्रश्नायित थे कि क्या षट्खण्ड पृथ्वी के चक्र तत्व से भी बड़ी कोई सत्ता हो सकती है ?
भ्रूमध्य में केन्द्रित, नासाग्र पर स्थिर तुम्हारी वह दृष्टि तनिक भी विचलित न हुई । तब हमारी ओर आँख उठा कर देख लो, यह प्रत्याशा कैसे कर सकती थी । आकाश, घास के तिनके और चींटी को देख रहे हो, तो
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