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की चोट से जगाया। तुम्हें यह स्वीकार्य नहीं था, कि श्रेणिक का सम्राटत्व तुम्हारे चरणों में समर्पित हो विश्राम पा जाये, चैन पा जाये। मेरे भीतर के, अपने द्वारा पदमर्दित सम्राट को तुमने हजार गुने अधिक वेग के साथ फिर से जगाया है। मेरी इयत्ता और अस्मिता को, मेरे चक्रवर्तित्व के गर्व को, फिर तुमने पराकाष्ठा तक उभारा है। मुझे तुम्हारे चरणों में मिट जाने तक की छुट्टी नहीं। क्या यही है मेरे लिये तुम्हारा प्यार ?
• एक मौन ललकार है मेरे सामने। कि मुझे तुम्हारे मुक़ाबिल खड़े रहना होगा। मुझे तुमसे टकराना होगा। · समझ रहा हूँ विदेह-पुत्र वैशालक, तुम मुझे युद्ध देने आये हो। अपनी नग्न काया के कायोत्सर्ग में तने खड़ग् की धार से, तुम मेरी दिगन्त-जयिनी तलवार के पानी उतार देने आये हो। स्वयम् मेरी तलवार की धार पर चल कर, तुम मुझे हर पल चुनौती दे रहे हो कि, मैं तुम पर प्रहार करूँ ? अपनी अरक्षित नग्न देह के पिण्ड रूप में सारी वैशाली को उसकी समस्त शक्ति और ऐश्वर्य के साथ तुमने मेरी भूमि में ला पटका है। और मौन मुस्करा कर मुझे आहूत कर रहे हो कि : 'लो श्रेणिक, यह वैशाली है-तुम्हारे चक्रवर्ती साम्राज्य की अनिवार्य शर्त । सामर्थ्य हो तो इस पर प्रहार करो, क़ब्जा करो। यह खुली है, और प्रस्तुत है, तुम्हारे सामने। इसकी हृदयेश्वरी आम्रपाली तुम्हारे विश्व-विजय के गर्वी वीर्य को परखना चाहती है। प्रहार करो उस पर । भुवनेश्वरो अम्बा तुम्हारे बेशर्त समर्पण से प्रसन्न नहीं हो सकती। वह तुम्हारे पुरुष की आखिरी चोट को ही समर्पित हो सकती है।' . .
तुम मेरे वीर्य की बूंद-बूंद में आग लगा रहे हो, महावीर ! तुमने मेरे मूलाधार में सुप्त कुंडलिनी को भयंकर पदाघात दे कर जगा दिया है। मेरे मेरु-दण्ड में दिवारात्रि यह महासर्पिणी शक्ति की सहस्रों विद्युत्धाराएं वन कर लहरा रही है। बेशक, शर्त लग गई है, कि तुम रहो या मैं रहूँ. . . ? साम्राज्य तुम्हारा हो या मेरा हो? आम्रपाली तुम्हारी हो या मेरी हो ? चेलना तुम्हारी हो या मेरी हो ?
मेरे मेरुदण्ड के म्यान में दो तलवारें एक-दूसरी से गुंथ रही हैं, एक-दूसरी को काट रही हैं। उन्हें परस्पर कट कर एक हो जाना होगा। इस एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं। लेकिन मेरी इयत्ता इतनी अपराजेय और दुर्दान्त हो उठी है, कि अपना मिटना अब मुझे किसी भी तरह मंजूर नहीं। अपने होने, रहने, अऔर कर्म करने की अनिवार्यता को आज से अधिक नग्न, निश्चल और अविका मैंने कभी अनुभव न किया। इतिहास का यह एक अपूर्व भेदी षड़यंत्र है। श्रेणिक को इस चक्रव्यूह का भेदन
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