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'भगवन्, मानुष के दासत्व से मुक्त करो । इन चरणों की दासी बना लो· · ·!'
‘एवमस्तु, देवी बहुला · · !'
· · ‘अपने पीछे दिव्य वीणा वादन करती देवागंनाओं के बीच, बहुला दासी का रानी-पद पर अभिषेक होते देख रहा हूँ। आनन्द गृहपति बहुला का चरणोदक ले, दूर जा रहे भिक्षुक के पीछे भागा । उसने श्रमण की पीछे छूटी पगधूलि में लोट कर श्रमण का कमण्डलु उठाना चाहा । ___'अभी समय नहीं आया, श्रेष्टि । बहुला का सेवक हो कर रह । कल्याणमस्तु . !'
श्रमण ने मयूर-पीछी से आनन्द गृहपति का वक्ष-देश बुहार दिया, और अपनी राह प्रस्थान कर गया ।
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