________________
१५७
· · और देख रहा हूँ, अपना परिघ आयुध ले कर चमरेन्द्र ईशान दिशा में गतिमान है। एक अरोक प्रभंजन । उसने अपनी आसुरी विभूति के बल, वैक्रिय समुद्घात से, अपने रूप को योजनों के विस्तार में विकुर्वित कर दिया है। श्याम कान्ति से उद्भासित एक महा शरीर। जैसे मूर्तिमान आकाश हो। नन्दीश्वर महाद्वीप का अंजनगिरि जैसे जंगम हो कर धावित है। फैली डाढ़ों की करवतों से भयंकर हो उठा है इसका चेहरा। इसके मुखाग्र के अग्निकुंड से उठ रही ज्वालाओं से सारा अन्तरिक्ष पल्लवित हो रहा है। कज्जल-गिरि जैसे इसके वक्षस्थल से सूर्य-मंडल आच्छादित हो रहा है। इसके भुजा-दण्डों के संचालन से ग्रह, नक्षत्र और तारे झड़ रहे हैं। इसके नाभि पद्म पर एक कुण्डी मार कर बैठा महासर्प फुफकार रहा है। इसके लम्बे-लम्बे जानु डग भरते हुए, पर्वत-चूलिकाओं से टकरा कर, विस्फोटक ध्वनि उत्पन्न कर रहे हैं। अपने पग के अवष्टंभ से यह भूमंडल को व्याकुल किये दे रहा है।
भैरव गर्जना करता हुआ वह ब्रह्माण्ड को फोड़ रहा है। प्रति-यमराज की तरह व्यंतरों को भयार्त करता हुआ, अपनी सिंह-छलाँगों से ज्योतिष्क देवों के विमानों को सन्त्रस्त करता हुआ, ना कुछ समय में ही, सूर्य-चन्द्र के मण्डलों का उल्लंघन करता हुआ, वह शकेन्द्र के मण्डल में जा पहुँचा है। उस भयंकर कालमूति को यों अकस्मात् बिजली के वेग से सम्मुख आते देख कर, किल्विष देवता छुप गये। आभियोगिक देवता भय-त्रस्त हो, गठरियाँ बन लढक पड़े। अपने सैन्यों सहित सारे देव-सेनापति पलायन कर गये। सोम तथा कुबेर प्रमुख सारे दिक्पाल उसकी हुंकारों से पसीज कर भूसात् हो गये। सारे परिकर और अंगरक्षकों से परित्यक्त एकाकी सौधर्मेन्द्र, इस अकल्प आक्रामक को सामने पाकर स्तंभित है। अटल गंभीर मुद्रा के साथ वह सन्नद्ध भाव से अपने सिंहासन से उठ खड़ा हुआ है। · · · ___ चमरेन्द्र ने दानवी हुंकार के साथ अपने एक पग से पद्म-वेदिका को चाँपा, और दूसरा पग सुधर्मा सभा में पटका। फिर परिघ आयुध द्वारा इन्द्र-कील पर तीन बार ताड़न कर, उत्कट भृकुटि-भंग के साथ दुर्मद चमरेन्द्र ने शकेन्द्र को ललकारा : ____'सावधान, शक्कर । चाटुकारों के बल तू कापुरुष कब तक देवलोकों पर राज्य कर सकता है ? देख, तेरा प्रतियोद्धा और विजेता जन्म ले चुका । अब तू और तेरे सारे सुरलोक, असुरेश्वर चमरेन्द्र के चरणों तले रहेंगे। . . . सावधान, मैं इस ब्रह्मांड को शीर्षासन करा दूंगा, अन्तरिक्ष गुलाट खायेंगे। मैं और मेरा असुर साम्राज्य ऊपर हो रहेगा। तू और तेरा अमर लोक, हमारा पादपीठ हो कर रहेगा · · ।'
.. 'शकेन्द्र ने अपने अवधिज्ञान से अन्धकार राज्य के अधीश्वर चमरेन्द्र को पहचाना। विस्मय के साथ सहज मुस्कुरा कर वे सौम्य स्वर में बोले :
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org