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सिद्धार्थ श्रेष्ठि ने त्रस्त होकर खरक वैद्य से अनुरोध किया कि वह श्रमण . के शरीर की परीक्षा कर निदान करे कि उनके शरीर में किस जगह यह शल्य भिदा हुआ है। · श्रमण हाथ खींच कर कायोत्सगित हो गया है । उसका देह-भान चला गया है। अविचल सुमेरु की तरह, आजानु भुजाएँ लम्बायमान कर वह स्तम्भित खड़ा रह गया है। खरक वैद्य ने बड़ी निपुणता से सूक्ष्मता पूर्वक उसके शरीर के प्रत्येक अंग और अवयव की परीक्षा की। तब श्रमण के दोनों कानों में ठुके शूलों पर उसकी दृष्टि अटक गयी । खरक ने सिद्धार्थ को वे शुलबिद्ध श्रवण दिखाये। हाहाकार कर उठा सिद्धार्थ ।
'मित्र खरक, तुरन्त तू ऐसा उपाय कर, कि ये सुकुमार प्रभु, किसी महा पापात्मा दुष्ट द्वारा दिये गये इस दारुण दुःख से मुक्त हो सकें। शल्य तो इन भगवन्त के श्रवणों में भिदा है, पर इनकी पीड़ा से मेरा सारा शरीर ऐंठा जा रहा है । शीघ्र इन जगत्पति भगवान को, तू इस असह्य कष्ट से मुक्त कर, आयुष्यमान् ।'
"मित्र सिद्धार्थ, ये प्रभु तो एक बारगी ही इस समस्त विश्व का क्षरण और रक्षण करने में समर्थ हैं । पर अपने ही बाँधे कर्मों का क्षरण करने के लिये, इन अर्हत् ने अपने अपकारी पुरुष को भी क्षमा कर दिया है । अपने कर्मक्षय के लिये, स्वेच्छतया इन्होंने इस प्राणहारी वेदना का भी वरण कर लिया है। अपनी ही देह की जिसने उपेक्षा कर दी है, उसकी चिकित्सा करने में मैं कैसे समर्थ हो सकता हूँ ? वह तो निरा दम्भ और अहंकार होगा, मित्र !'
तर्क-युक्ति करने का समय नहीं है, आयुष्यमान् । मुझे प्राणान्तक वेदना हो रही है । तू तत्काल इन भगवन्त को शल्य-मुक्त कर, ताकि मैं जीवित रह सकू ।'
झलक रहा है मेरे भीतर : यह शल्य-पीड़ा केवल मेरी ही नहीं रह सकी है । सिद्धार्थ में संक्रमित हो कर, वह जैसे प्राणि मात्र में व्यापती जा रही है । इसके सर्जक ग्वाले को भी चैन नहीं। · · वही हो, जिससे सबकी शल्य-पीड़ा दूर हो, सब को साता मिले । - -
- मैं चुपचाप चल पड़ा। शाल्मली -उद्यान में अपने स्थान पर पहुँच कर पद्मासन में ध्यानस्थ हो रहा । • 'कुछ ही देर बाद दिखायी पड़ा : सिद्धार्थ और खरक वैद्य आवश्यक औषधि-उपचार के साधन ले कर उद्यान में दौड़े आये हैं। मेरे शरीर को पद्मासन में ही ज्यों का त्यों उठा कर एक तेल की कुण्डी में बैठा दिया गया है। प्रत्येक अंगांग में तेल का अभ्यंगन किया गया है । बलवान मर्दन करने वाले मर्दकों ने मेरी देह के चप्पे-चप्पे का बड़ी मृदुता से मर्दन किया है। इस प्रकार मेरे शरीर के प्रत्येक साँधे को शिथिल कर दिया गया है।
फिर दो व्यक्तियों ने शल्य-उच्छेदक संडासियाँ ले कर, दोनों कानों के शूलों पर पकड़ बैठा कर, एक साथ उन्हें पूरी शक्ति से खींचा। · · उस क्षण बरबस ही मेरे मुख से एक भयंकर चीख निकल पड़ी । ऐसी वेदना की अनुभूति हुई, जैसे कोई वज्रबाण ब्रह्माण्ड के हृदय को भेद कर मेरे आरपार निकल गया हो। . .
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