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व्यस्त रहते हैं। कौशाम्बी के सारे ही निमित्त ज्ञानी, तांत्रिक, मांत्रिक, दैवज्ञ, ज्योतिर्विद एक-एक कर आये हैं, और महावीर के मनोमंत्र की थाह न पा कर, म्लान मुख लौट गये हैं। विपुल दान-दक्षिणा दे कर राज्य के महायानिकों से हवन-अनुष्ठान करवाये जा रहे हैं। सारे ही जिनालयों में सिद्धचक्र-पूजा के मण्डल-विधान चल रहे हैं। . . .
पर हुतात्मा वर्द्धमान के क्षुधा-तृषा-यज्ञ की पूर्णाहुति सम्भव न हो सकी है। हर दिन भिक्षा की अंजुलि फैलाये सुकुमार राज-संन्यासी कौशाम्बी की परिक्रमा कर भूखा ही लौट जाता है। कौन घाव उसके मर्म में टीस रहा है ? अन्तरयामी के अन्तर की थाह लेने में कौन समर्थ हो सकता है। कौशाम्बी में हाहाकार मच गया है। दासी-पण्यों में आक्रन्द करती दासियाँ, चंडिकाएँ हो उठी हैं। अपने सौदागरों के सारे नागपाशों को तोड़ कर, वे पागल की तरह विलाप करती, इस सुन्दर सुकुमार नग्न अवधूत के पीछे भागी फिरती हैं। जहाँ उसके पैर पड़ते हैं, वहाँ की धूलि में वे लोटने लग जाती हैं। उसकी चरण-रज को आंचलों में भरने की कामें होड़ लगी रहती है। दासी-पण्य उजड़ गये हैं। सौदागर हार मान कर हाथों पर हाथ धरे बैठे रह गये हैं। अनेक तो अपनी हट्टी उठा कर, व्यापार की टोह में परदेस चले गये हैं।
कौशाम्बी के वेश्यालयों के कपाट बन्द हो गये हैं। वे रूप-जीवियाँ रूप-यौवन तथा शिश्नोदर की भूख-प्यासें बिसर गयीं हैं। साँझों में शृंगारप्रसाधन और अतिथि-आवाहन की सुध-बुध उन्हें नहीं रह गयी है। दीपबेला में, अपने इष्टदेव को धूप-दीप फूल-गन्ध चढ़ा कर, आँचल माथे पर ओढ़ कर, वे साश्रु-नयन प्रार्थना में लीन हो रहती हैं :
'हे मुझ पापिन के देवता, कब तक कुमार-भागवत ऐसे ही भूखे-भरखे हमारे द्वारों से लौटते रहेंगे, और हम पेट भर शालि-खीर खा कर, सुख की नींद सोयेंगी? जान पड़ता है, हमारे ही जनम-जनम के पापों का प्रायश्चित कर रहे हैं हमारे ये परम प्रीतम, परम पिता। धिक्कार हैं हमारे ये सारे सिंगार और प्रणय-व्यापार, यदि हमारी एकाकिनी आत्मा के ये एकाकी वल्लभ प्रभु उनसे प्रसन्न और परितुष्ट नहीं होते . . . !' और वे आँसू सारती हुई जहाँ की तहाँ शव की तरह लुढ़क पड़ती हैं। - चार महीने हो गये। हर अन्धी गली के अन्तिम अँधेरे में धंसता ही चला गया हूँ। पाया है कि तमसलोक की उस कुहा का अन्त ही नहीं है। हर पर्दे के बाद एक और मोटा पर्दा है : उसमें भी तह के भीतर कई तहें हैं, पर्त के भीतर कई पर्ते हैं। जाले के भीतर कई जाले हैं। गव्हर में
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