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रह गया । • ओरी भद्रा दासी, यह कैसा पापोदय हुआ है, मेरे और सारी कौशाम्बी के, कि भगवान आज चार महीने से, गोचरी पर निकल कर भी, हमारे अन्न को कृतार्थ नहीं करते। हमारी सारी पूजांजलियों को पीठ देकर वे चले जाते हैं।
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सुगुप्त मंत्री जब साँझ को घर लौटे, तो देखा कि नन्दा रानी उदास मुख लिये आँसू सार रहीं हैं। मंत्री ने उनकी मनुहार कर कारण जानना चाहा, पर नन्दा के मुख में बोल रुँध गया है । उत्तर नहीं मिलता। मंत्री हारे-से उसके पैरों के पास निरुपाय बैठ रहे । तब बहुत देर बाद आँचल से आँसू पोंछती नन्दा उपालम्भ के स्वर में बोली :
'ओजी मन्त्रीश्वर, वत्स देश का महाराज्य किस बुद्धि से चलाते हो ? तुम यह भी पता नहीं लगा सके, कि किस कारण महाश्रमण महावीर भगवन्त, तुम्हारी विपुला नगरी में चार महीने से हर दिन भिक्षाटन करके भी, भूखेप्यासे ही लौट जाते हैं ? धिक्कार है तुम्हारी विलास नगरी कौशाम्बी का देवोपम वैभव । निःसत्व हैं, तुम्हारे अपार धान्यों से लहलहाते खेत । रसहीन हैं तुम्हारे रसमाते फलोद्यान । दुग्धहीन हैं तुम्हारे दूध-दही की नदियाँ बहाते गोधन । तुम्हारे इस विशाल अन्नकूट में कुछ भी देवार्य वर्द्धमान के लिये कल्प न हो सका ?
'कैसा दुर्द्धर्ष अभिग्रह धारण कर भूख-प्यास की ज्वालाओं में तप रहे हैं वे महातपस्वी ! कौशाम्बी के वैभव से चौंधियाते, धन-धान्यों से भरपूर राजमार्गों की अवगणना कर, वे नगर की भूखी-प्यासी, त्रस्त, अनाथ अन्धी गलियों में चले जाते हैं । और फिर लौट कर आते नहीं दिखायी पड़ते।
'हमारी लज्जा और अनुशोचना का पार नहीं । हमारे आँचलों के दूध सूख गये हैं, इस दारुण हताशा से । और तुम राजपुरुषों के कानों पर जूं भी नहीं रेंगती । धिक्कार हैं तुम्हारे ये राज्य और पौरुष । धिक्कार हैं तुम्हारे और तुम्हारे राजेश्वरों के ये मुकुट-कुण्डल के अभिमान । गंधशालियों से लहलहाते तुम्हारे गंगा-यमुना के ये दोआब मुझे बन्जर लगते हैं । प्रभु ने तुम्हारे एक तंदुल के दाने को भी अपने आहार के योग्य नहीं समझा ! '
मंत्रीश्वर निरुत्तर, लज्जित, नतमाथ धरती में गड़े रह गये हैं । फिर बहुत मनुहार कर रूठी रानी को मनाया है । वचन दिया है कि शीघ्र ही प्रभु के दारुण अभिग्रह का पता चलायेंगे 1
महारानी मृगावती के सिंहद्वार पर भी हर दिन आहारदान का भव्य राजसी आयोजन होता है । पर भिक्षुक उस राह तो आया ही नहीं । मौसीमहारानी का मातृ-हृदय उससे मसोस उठा है, और उनके ऐश्वर्य गर्वी अहंकार
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