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--- आज्ञा दें भूतनाथ, शक्ति दें सकल ब्रह्माण्डपति, कि मैं देवाधिदेव शंकर की भत्ता को चुनौती देने वाले इस मानव-पुत्र तापस के दुर्जय तपो-गर्व को छिन्नभिन्न कर सकें। उसकी समाधि को पैरों तले रौंद कर, उसे जीवित जला कर, उसकी भस्म से महाकालेश्वर के श्रीचरणों को चर्चित कर सकूँ ।'
स्थाणु रुद्र को अनुभव हुआ कि ज्योतिलिंग कम्पायमान हुए हैं । और गुम्बद में से गभीर प्रतिध्वनि हुई :
'यथा अव तथा अन्यत्र : जो यहाँ है,वही वहाँ है । आदिनाथ · · ·आदिनाथ! . . . यहाँ भी वही, वहाँ भी वही । अन्य कोई नहीं । ' . . '
· · वाणी चुप हो गई । सन्नाटा और भी गहरा हो गया । शब्दातीत परम शान्ति में जगत का अणु-अणु विश्रब्ध हो गया है। · अशान्ति शेष रह गई है केवल स्थाणु रुद्र की कषाय से पंकिल आत्मा में । अपने अहंकार के सिवाय वह और कुछ भी देख पाने में असमर्थ है । सो यह वाणी उसके जड़ित हृदय को जागृत न कर सकी। किंकर्तव्यविमूढ़ पहेली बुझता-सा, वह चहुँ ओर ताकता रह गया है । उसके अहम ने जो समझायाः वही उसने समझा 'जो यहाँ है, वही वहाँ है । जो आदिनाथ यहाँ है, वही उस स्मशान में भी मेरी सहाय को उपस्थित हैं, उस नंगे शिवद्रोही के मानभंजन में वे अचूक सहाय करेंगे ही। · ·ओरे उलंग उत्पाती, छद्म दिगम्बर, 'ले मैं आता हूँ, और तेरे दिगम्बरत्व के मद को चूर-चूर करके ही चैन लूंगा। . . '
· · ·और स्थाणु रुद्र दुर्मत्त अहम से गरजता हुआ, विद्युत् वेग से अतिभुक्तक स्मशान की ओर धावमान है।
· · ·ध्यान में चेतना का अभिसरण देह के सीमान्तों को पार कर गया है। एक आयामविहीन गहन में प्राण रक्षातीत हो कर, ऊपर, नीचे, चहुँ ओर अपरिछिन्न भाव से व्यापते जा रहे हैं । एक.अनाहत प्रसारण, प्रवाहन और उड्डयन के अतिरिक्त और कोई बोध शेष नहीं रह गया है।
- - हात् ब्रह्माण्डीय विस्फोट के साथ, सारी स्मशान भूमि तुमुल कोलाहल से भर उठी। देख रहा हूँ, मेरे आसपास सैकड़ों चिताएँ जल रही हैं. . . 'रामनाम सत्य है !' की गंजों के साथ, एक पर एक कई स्मशान-यावाएँ चली आ रही हैं। मेरे पादप्रान्त में अथियों और नग्न भयावने शवों के ढेर लगते जा रहे हैं। काले चूंघट काढ़े स्त्रियों के विशाल समुदाय छाती-फाट विलाप करते आ रहे हैं । गिद्ध, कौवे, उल्लू और कुत्ते शवों के अस्थि-मांस नोचते हुए परस्पर संघर्ष कर रहे हैं । और नाना प्रकार से, शोक-विषाद के उद्बोधक समवेत रूदनगान, तारस्वर में गा रहे हैं । · · ·औचक ही जाने कहाँ से धमाके पर धमाके हुए : पृथ्वी फट कर कई पाताल लोक खुल पड़े। अन्तरिक्ष विदीर्ण होते दीखे । · · · उनकी विकराल
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