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'ओरे सौधर्म कल्प-स्वर्ग के देवताओ, इस क्षण प्रत्यक्ष आँखों के सामने मैं म्लेच्छ भुमि में ध्यानस्थ महातपस्वी महावीर प्रभु का दर्शन कर रहा हूँ। पंच समितियों के धारक, तीन गुप्तियों से पवित्र, क्रोध, मान, माया और लोभ से अजेय, कर्माश्रव रहित और द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव सम्बन्धी सारे ही प्रतिबंधों से अप्रतिबद्ध वे योगीश्वर भगवन्त इस समय एक रूक्ष पुद्गल पर दृष्टि स्थिर करके महाध्यान में लीन हैं। देवता, असुर, यक्ष, राक्षस, उरग, मनुष्य, अरे त्रैलोक्य की कोई भी शक्ति उन्हें इस समाधि से विचलित करने में समर्थ नहीं। . . .'
देव-सभा के एक कोने में बैठा सामानिक संगम देव, शक्रेन्द्र की यह स्तुति सुन कर विक्षुब्ध हो उठा। भृकुटि कुंचित कर, कोपाग्नि से दहकते नेत्रों के साथ, काँपते ओठों से वह बोला: ___हे शक्रेन्द्र, एक श्रमण रूपधारी बौने मनुष्य की ऐसी प्रशंसा कर रहे हो? एक मर्त्य मनुज के सम्मुख स्वर्गों के अधीश्वर ने पराजय स्वीकार ली? यह तुम्हारा स्वच्छंदाचार है, सुरेन्द्र ! देवों की समस्त जाति को आज तुमने लांछित और अपमानित किया है। जिसके शिखर आकाश को अवरुद्ध किये हैं, जिसके मूल रसातल का भेदन करते हैं, ऐसे सुमेरु गिरि को भी अपने भुजबल से उच्छिन्न कर एक ढेले की तरह उठा फेंकने में समर्थ हैं हम देवतागण । कुलाचलों सहित पृथ्वी को अपने में डुबा लेने की क्षमता रखने वाले स्वयम्भुरमण समुद्र का मात्र गंडूष (कुल्ला) करके हम उसे हवा में उछाल सकते हैं। अनेक पर्वतों से मंडित इस प्रचण्ड पृथ्वी को हम अपने बाहुदण्ड पर उठा कर छत्र की तरह धारण कर सकते हैं। ऐसे अतुल समृद्धिशाली, अमित पराक्रमी और इच्छानुसार सिद्धि प्राप्त करने वाले हम कल्पवासी देवों के समक्ष, इस मानुष तनधारी तुच्छ तापस की क्या हस्ती है ? शकेन्द्र सुनें, सारे स्वर्ग सुनें, समस्त देवगण सुनें, मैं एक निमिष मात्र में उस नग्न वामन को ध्यान से चलायमान कर धराशायी कर दूंगा। ...'
इतना कह कर संगम देव ने प्रचंड वेग से भूमि पर हाथ-पैर पछाड़े और वह सुधर्मा सभा से पलायन कर गया। सौधर्मेन्द्र एक मच्छर की तरह उस कषाय-प्रमत्त देव की अवज्ञा कर, फिर से नृत्य-संगीत के आनन्द में लीन हो गये ।
ध्यान की उच्च से उच्चतर सरणियों में आरूढ़ हो रहा हूँ। मेरी देह की पृथ्वी चूर्णित पर्वत की तरह नीचे की ओर झड़ रही है। जल, वायु, अनल, आकाश को अपने चारों ओर भाँवरे देते अनुभव कर रहा हूँ। एक भारविहीन अधर में चेतना उन्मुक्त पंछी सी तैर रही है।
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