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बस केवल देख रहा है · · देख रहा है । पर क्या है, जो वह नहीं कर रहा ? क्योंकि वह कुछ नहीं कर रहा · · । बस, है । अस्ति ।
- 'ओ, यह अन्तिम पुरुष, इस क़दर हर चोट और पकड़ से बाहर है, ऊपर है ? ठीक है, अघात्य है इसका तन । लेकिन इसका मन, इसका प्राण, इसकी चेतना ? जो कमल-पाँखुरी की नसों की तरह कोमल, लचीले, महीन हैं। इसके तन को नहीं तोड़ा जा सका, तो इसके मन को तोडूंगा। इसकी अति कोमलांगी सुन्दरी-सी आत्मा को एक ही वार में चूर-चूर कर दूंगा। फिर किसके सहारे टिकेगा इसका अघात्य शरीर? इसकी ये वज्रीली हड्डियाँ · · · ·?
· · ·और अचानक दिखायी पड़ा, पिता सामने खड़े हैं। सुनायी पड़ी उनकी स्पष्ट आवाज़ :
'वर्द्धमान, बेटा वर्द्धमान ! मुझे पहचान तक नहीं सकते ? मैं तुम्हारा प्यारा पिता सिद्धार्थ । तुम मेरे ही आत्मज हो। · · एक बार आँख खोल कर सामने भी नहीं देखोगे? · · · 'मान, मेरे लाल, मेरे रक्त, मेरी आत्मा, तुम? यह तुमने क्या किया? क्यों तुम हमें छोड़ गये ? हमारी प्यार भरी छातियों पर लात मार कर चले गये ! इसी दुदिन के लिये ? इस अन्तहीन राक्षस-लीला के दुश्चक्र में फंस कर निरन्तर अपनी मिट्टी पलीद करवाने के लिये · · ?
'किस अपराध के लिये तुमने हमें ऐसा दारुण दण्ड दिया है ? तुम्हें सहन नहीं हुआ हमारा सुख ? अपना सुख तक तुम्हें असह्य हो गया ? कैसी भयंकर प्रहारवाणी तुम वैशाली पर बोलते थे । तुम्हारे मन का हो गया, वर्द्धमान ! तुम्हें खबर देने आया हूँ । आततायी अजातशत्रु ने भारत के पाँचों महाराज्यों को अपनी मुट्ठी में कर, असंख्य वाहिनियों के साथ एक आधी रात वैशाली पर आक्रमण कर दिया । अगले सूर्योदय तले वैशाली महास्मशान हो कर सुलग रही थी, और उसकी लपटों पर तुम्हारी प्रिय अम्बपाली हमारे विनाश का ताण्डव-नृत्य कर रही थी।
'हमारे सारे राजमहल आक्रान्ताओं ने हमसे छीन लिये । हमें निकाल बाहर कर, बियाबानों में ला पटका । हम बेघर-बार, निर्जल निराहार दर-दर की खाक छान रहे हैं । हम सब एक-दूसरे से बिछुड़ कर प्रेतों की तरह अपनी लाशें ढो रहे हैं। और जानते हो, तुम्हारी प्रिय चन्दन कहाँ हैं ? · · 'अरे तुम तो पहाड़ की तरह ख़ामोश हो ! तुम्हें हमसे कोई सरोकार नहीं? चन्दन तक को तुम भूल गये ? · . . कहाँ है तुम्हारा वह तीर्थंकर, काल की अवसर्पिणी का अन्तिम परित्राता ? जिसकी घोषणाएँ करते तुम थकते नहीं थे । - - ‘मान, बोलो मान, बेटा, एक बार तो आँखें उठाओ, ओंठ खोलो · · । तुम्हारा जनक तुम्हारे चरणों में शरण खोजने आया है, त्राण की भीख माँगने आया है । - अरे तुम्हें अपनी माँ तक पर दया नहीं आ
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