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‘एवमस्तु । वही तू है, ब्राह्मण !' 'यह मैं कौन हो गया, भन्ते ?' 'मद्रूप हो गया, तद्रूप हो गया !' 'देवार्य का अनुसरण करता हूँ, भन्ते ।' 'अनुसरण अपना कर, मेरा नहीं ।' 'भगवन् . . . !' 'किसी का अनुगमन न कर । अपनी ही ओर प्रतिगमन कर।' 'कहाँ जाऊँ, स्वामी ?'
'जहाँ तेरी आत्मा तुझे ले जाये । जहाँ तेरे पैर तुझे ले जायें । सब मार्ग वहीं जाते हैं !'
'कहाँ पहुँचना होगा, स्वामिन् ?' 'गन्तव्य पर पहुँच कर, स्वयम् ही जान लेगा।'
• • दूर-दूर जा रहा नग्न ब्राह्मण बिन्दु-शेष हो, ओझल हो गया । किसने किसे प्रतिबोध दिया, पता नहीं । मैं तो बोलता नहीं, उपदेश करता नहीं । स्वयम् ही छद्मस्थ हूँ, अपूर्ण हूँ। पर जो अभी सुना है, उससे अपने आप में अधिक प्रबुद्ध हुआ हूँ, अधिक आलोकित हुआ हूँ। ओ अकिंचन ब्राह्मण, तेरा कृतज्ञ हूँ !
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