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गये । शून्य चैत्य के देवासन पर मल्लिनाथ प्रभु के अत्यन्त मनोहारी जीवन्त बिम्ब के दर्शन हुए। उन अर्द्धनारीश्वर प्रभु के रूप में एकबारगी ही उन्हें नर-नारी के दर्शन हुए। देख कर श्रेष्ठी-युगल की मर्म-वेदना उमड़ आई। वन्दना में विनत हो कर उन्होंने प्रार्थना की : 'हे देव, आपके अनुगृह से यदि हमें सन्तान लाभ हो, तो हम आपके जिनालय का जीर्णोद्धार करायेंगे। चिरकाल आपके भक्त हो कर रहेंगे ! . . .' __ मल्लिनाथ तो कुछ करते नहीं। वे न तो नर हैं, न नारी हैं : बस केवल आप हैं। पर उनकी भावमूर्ति से अभिभूत हो कर उस युगल के हृदय में अन्तनिहित भगवत्ता जागृत हो उठी । भाव ही तो भगवान है। · · वह पूर्ण प्रकट हो जाये, तो असम्भव सम्भव हो जाये ।
- वन्ध्या भद्रा सेठानी गर्भवती हो गई। यथा समय एक सुन्दर पुत्र से उसकी गोद भर गई। . . .
· · 'कचनार वन की शीतल सौरभ-छाया में मुझे गभीर निजानन्द की रस-समाधि हो गई । . . .
मन्दिर का जीर्णोद्धार हो गया है। वाजित्रों और मंगल-ध्वनियों के हर्षकोलाहल के साथ भरी शोभा यात्रा इस ओर आ रही है। मंदिर में सिद्धचक्र पूजा का भव्य अनुष्ठान चल रहा है । सबसे आगे दुइज की चन्द्रकला-सा शिशु गोदी में उठाये भद्रा सेठानी भक्ति -विनम्र भाव से चली आ रही हैं। उनकी दायीं ओर पुलक-रोमांचित वागुर श्रेष्ठि चल रहे हैं । . . .
कचनार वन की कुसुम-क्रीड़ा का स्मरण होते ही, दम्पति ने सहज ही उधर दृष्टि उठायी। युगल के पाँव वहीं ठिठक गये । सारा हर्ष-कोलाहल आश्चर्यविमुग्ध, स्तंभित हो रहा । दम्पति आनन्द-विभोर हो पुकार उठे :
_ 'हम धन्य हुए, हमारा मानव-जन्म कृतार्थ हो गया ! मल्लिनाथ प्रभु ने साक्षात् प्रकट हो कर, हमें दर्शन दिये · · । भगवान मल्लिनाथ जयवन्त हों, जयवन्त हों, जयवन्त हों !'
सारी लोक-मेदनी अन्तहीन जयध्वनि करने लगी। भद्रा ने अपनी उपलब्धि को प्रभु के चरणों में अर्पित कर दिया। मन्दिर की सारी पूजा-अर्चा कुसुम-वन में आ गई। कचनार ने ढेर-ढेर फूलों की वृष्टि की। • • .
मैं मुस्कुरा आया । • • 'शुन्य मंदिर में फिर एकाकी हो गये मल्लिनाथ क्या सोच रहे होंगे ? • - 'मुझे क्या पता, कि वही देवासन त्याग कर यहाँ बाहर
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