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'पर आपने तो किया, भन्ते ?'
'वह विधान नहीं । जो देखा, वही कहा। जहाँ तक देखा, वहाँ तक कहा ।'
गोशालक चुपचाप बहुत दूर तक अनुसरण करता रहा । एक तिराहे पर,. श्रावस्ती का मार्ग मुड़ता था। वहीं अटक कर बोला :
'भन्ते, आज्ञा दें, श्रावस्ती जाऊँगा । तेजोलेश्या सिद्ध किये बिना चैन नहीं ।'
श्रमण ने कोई उत्तर नहीं दिया । अटल भवितव्य - रेखा को देखते, वह अपने पथ पर एकाग्र आरूढ़ रहा । गोशालक श्रावस्ती की राह पर मुड़ गया ।
'काल-प्रवाह में दूर पर देख रहा हूँ । 'तेजोलेश्या सिद्ध गोशालक, अनेक - ऋद्धि-सिद्धि से सम्पन्न हो कर, मूढ़ लोक-जनों को आतंकित करता हुआ, प्रभुता - प्रमत्त भाव से पृथ्वी पर विचरण कर रहा है। तीर्थंकर पार्श्व के छह शिष्यशोण, कलिंद, कार्णिकार, अच्छिद्र, अग्निवेशान तथा अर्जुन उसे श्रावस्ती में दैवात् मिल गये । उनसे अष्टांग निमित्तज्ञान सीख कर, संसारी मनुष्यों के भाग्य और भविष्य का निर्णय करता हुआ, वह सर्वत्र अपने को 'जिनेश्वर' उद्घोषित करता घूम रहा है । वह अपने को आजीविक परम्परा का चम तीर्थंकर कहता है, और अज्ञानी लोकजन उसके चरणों में प्रणत हो, उसका अनुसरण करते हैं ।
प्रभुता के प्यासे मंखलि गोशाल, पश्चात्ताप की ज्वालाओं के बीच एक दिन तेरा यह अहंकार भस्म हो कर सोहंकार हो जायेगा । आज तू प्रभुता के पीछे भाग रहा है । उस दिन प्रभुता स्वयम् तेरा वरण करेगी । एवमस्तु ।
जगत के सारे रास्ते क्या वैशाली ही जाते हैं ? फिर वैशाली के विश्व-विख्यात प्रमद - कानन 'महावन' के सुगन्ध-निविड़ अँधियारों में विचर रहा हूँ । वैशाली, तेरी उम्बेला के गोपन गुहादेश को भेद कर ही मेरा मार्ग जाता है। तेरे केलि-मग्न युवा-युवतियों के प्यालों की मदिरा सहसा ही आग हो उठी हैं । मूर्च्छित युगलों के आलिंगन एकाएक टूट गये हैं उनके सुरा-चषक हाथों से छूट कर फूट गये हैं । चिन्ता न करो, तुम्हारे द्राक्षावनों के अंगूरों में मैं ही आलोड़ित हूँ। मैं ही तुम्हारी सुराओं में विस्फोटित हो कर जल रहा हूँ । मैं ही तुम्हारा आलिंगन हूँ, युवाजनो, उससे छूट कर ही मुझे पहचानोगे !
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ओ, · · 'अपने भूशायी केशों को सँवारते हुए, आम्रपाली, तुम हठात् चौंक उठी हो। तुम्हारे कुन्तलों का तमालवन यह किसकी सत्यानाशी पगचाप
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