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________________ ११४ गये । शून्य चैत्य के देवासन पर मल्लिनाथ प्रभु के अत्यन्त मनोहारी जीवन्त बिम्ब के दर्शन हुए। उन अर्द्धनारीश्वर प्रभु के रूप में एकबारगी ही उन्हें नर-नारी के दर्शन हुए। देख कर श्रेष्ठी-युगल की मर्म-वेदना उमड़ आई। वन्दना में विनत हो कर उन्होंने प्रार्थना की : 'हे देव, आपके अनुगृह से यदि हमें सन्तान लाभ हो, तो हम आपके जिनालय का जीर्णोद्धार करायेंगे। चिरकाल आपके भक्त हो कर रहेंगे ! . . .' __ मल्लिनाथ तो कुछ करते नहीं। वे न तो नर हैं, न नारी हैं : बस केवल आप हैं। पर उनकी भावमूर्ति से अभिभूत हो कर उस युगल के हृदय में अन्तनिहित भगवत्ता जागृत हो उठी । भाव ही तो भगवान है। · · वह पूर्ण प्रकट हो जाये, तो असम्भव सम्भव हो जाये । - वन्ध्या भद्रा सेठानी गर्भवती हो गई। यथा समय एक सुन्दर पुत्र से उसकी गोद भर गई। . . . · · 'कचनार वन की शीतल सौरभ-छाया में मुझे गभीर निजानन्द की रस-समाधि हो गई । . . . मन्दिर का जीर्णोद्धार हो गया है। वाजित्रों और मंगल-ध्वनियों के हर्षकोलाहल के साथ भरी शोभा यात्रा इस ओर आ रही है। मंदिर में सिद्धचक्र पूजा का भव्य अनुष्ठान चल रहा है । सबसे आगे दुइज की चन्द्रकला-सा शिशु गोदी में उठाये भद्रा सेठानी भक्ति -विनम्र भाव से चली आ रही हैं। उनकी दायीं ओर पुलक-रोमांचित वागुर श्रेष्ठि चल रहे हैं । . . . कचनार वन की कुसुम-क्रीड़ा का स्मरण होते ही, दम्पति ने सहज ही उधर दृष्टि उठायी। युगल के पाँव वहीं ठिठक गये । सारा हर्ष-कोलाहल आश्चर्यविमुग्ध, स्तंभित हो रहा । दम्पति आनन्द-विभोर हो पुकार उठे : _ 'हम धन्य हुए, हमारा मानव-जन्म कृतार्थ हो गया ! मल्लिनाथ प्रभु ने साक्षात् प्रकट हो कर, हमें दर्शन दिये · · । भगवान मल्लिनाथ जयवन्त हों, जयवन्त हों, जयवन्त हों !' सारी लोक-मेदनी अन्तहीन जयध्वनि करने लगी। भद्रा ने अपनी उपलब्धि को प्रभु के चरणों में अर्पित कर दिया। मन्दिर की सारी पूजा-अर्चा कुसुम-वन में आ गई। कचनार ने ढेर-ढेर फूलों की वृष्टि की। • • . मैं मुस्कुरा आया । • • 'शुन्य मंदिर में फिर एकाकी हो गये मल्लिनाथ क्या सोच रहे होंगे ? • - 'मुझे क्या पता, कि वही देवासन त्याग कर यहाँ बाहर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003846
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1979
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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