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• • जानता हूँ, प्रतिशोध की हिंसा से पागल हो कर ही, आज तुम मुझे यह हिमदाह दे रही हो । पर प्रतिशोध भी तो उसी से लिया जाता है, जो नितान्त अपना हो । जिसके बिना रहा न जा सके । बदला लेने के बहाने जी भर मुझ से प्यार ही तो वसूल कर रही हो । तुमने इतनी अवहेलना सह कर भी मुझे इस योग्य समझा ! मैं तुम्हारे अस्तित्व की शर्त हो रहा। · तो सुनो, अपराधी प्रस्तुत है : प्रतिशोध लो या प्यार करो, उसे कोई अन्तर नहीं पड़ेगा । क्यों कि तुम्हारी आत्मा की लौ को उसने देख लिया है। जानो कि अब वह एकान्त रूप से तुम्हारा है।
'नाथ · · · , मेरे तीनों लोकों और तीनों कालों के स्वामी ! आ गये तुम ? एक ही झटके में मेरी संसार-रात्रि को काट दिया तुमने । ठोड़ी पकड़ कर मेरा चूंघट उठा दिया तुमने । प्रीतम ने अपराधी की मुद्रा में आ कर आत्मार्पण कर दिया है। क्षमा किससे, कैसे माँगू? तुम्हें तो झेलते ही बनता है . ।' __ श्रमण ने झक कर अपने चरणों में पड़े उस तापसी के माथे को छु दिया। वे बँधी हुई ग्रंथिल जटाएँ खुल कर मुक्त कुन्तलों में महक उठीं।
- - देख रहा हूँ, किसी अनुत्तर दिव्य लोक के विमान पर खड़ा, निखिल लोक का अवलोकन कर रहा हूँ। · · ·लोकावधि-ज्ञान की सर्व-दर्शी श्रेणि पर आरूढ़ हो गया हूँ । आत्मा की शक्तियों और रहस्यों का पार नहीं।
भद्रिकापुरी आया हूँ । चन्द्रभद्रा नदी के तट पर, एक सप्तच्छद वृक्ष के नीचे, शिला तल पर बैठा हूँ । नदी की धारा पर निगाह स्थिर हो गयी है। ग्रीष्म की यह पाण्डुर तन्वंगी नदी विरहिणी-सी लगती है। सोच में पड़ कर, मेरे सामने मानो रुक-सी गई है। पूछ रही हो जैसे :
'कहाँ से आयी हूँ मैं, और कहाँ जाना है। बहते हुए जनम-जनम बीत गये, पर आज अपना पता पाने को जी बहुत अकुला गया है।' __.. 'ओ नदी, बहती रहो अपने में अविकल । रुको नहीं, सोचो नहीं, पूछो नहीं : एक दिन आप ही जान लोगी कि कौन हो, कहाँ है तुम्हारा उद्गम, क्यों है तुम्हारा अभिगम, कहाँ है तुम्हारा निर्गम । . .'
· · ·आषाढ़ के पहले बादल गरजने लगे । वनभूमि नाचते मयूरों की पुकारों से पागल हो गई है। बिजलियाँ कड़कने लगी हैं। नदी और उसके तटवर्ती ग्राम अंजनी छाया में विश्रब्ध हो गये हैं। धरती के गर्भ में ब्याकुलता है, विस्फार है, कि वह मेघ के उल्कावेघ से बिद्ध हो, नवजीवन को झेले, धारण करे, असंख्य अंकुरों और जीवाणुओं में प्रस्फुटित हो ।
• • पता नहीं कब, मूलाधार में अन्तर्लीन हो गया हूँ। मेरी पृथुल जंघाओं में पृथिवी सिमट आयी है। पुनरावृत्ति से अब वह ऊब गई है । चाहती है, उसके
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