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में आ निकला है । मिलोगे नहीं ? तुम्हें प्यार करने को मेरा जी बहुत विकल है । जानता हूँ, तुम्हें कोई प्यार नहीं करता । यह मुझे असह्य है। इसी से जाने कितनी भवाटवियाँ पार कर तुम्हारे द्वार पर चला आया हूँ। क्या मुझे नहीं पहचानते. · · ? सामने आओ, तो पहचानोगे।
अचानक वक्ष-कंकालों का आच्छादन हट गया । एक परित्यक्त आश्रम दिखाई पड़ा । उसके खण्डहरों में भी किसी गोपन रमणीयता का आभास है । भग्न, जनहीन दालानों, द्वारों, खिड़कियों में जाने कैसी एक जड़ीभूत उपस्थिति का बोध व्याप्त है । इस परित्यक्तता में भी एक पुरातन प्रीति का संस्पर्श है। बीच के आँगन में शून्य वेदी पर हवन-कुण्ड की अग्नि बुझे मुद्दतें हो गईं। पर देख रहा हूँ, एक नीली-हरी सिन्दूरी ज्वाला उसमें से अनाहत उठ रही है । एक हवन-शिखा, जो शताब्दियों से मेरी प्रतीक्षा में है। वह एक सर्वांग सुलक्षण पुरुषोत्तम की आहुति चाहती है । क्या मेरी आहुति इस अनाद्यन्त यज्ञशिखा को तृप्त कर सकेगी ? प्रस्तुत है वर्द्धमान। ..
देख रहा हूँ, वृक्षों में, आश्रम की दीवारों में, यहाँ के कोनों-अँतरों में, झाड़ियों में विलुप्त प्राणियों में, जगह-जगह पड़े जीव-जन्तु, पशु-पक्षियों के मृत देहों में, यहाँ के आकाश-वातास तक में एक दाह का वास निरन्तर व्याप्त है । सभी कुछ किसी निरन्तर जलन से भस्मीभूत और कलौंछा दीख रहा है । एक चिर अतृप्ति की वह्रिमान जिह्वा चारों ओर लपलपाती हुई तृष्णात भटक रही है।
आश्रम के उजड़े यक्ष-मण्डप में आकर, प्रलम्बायमान भुजाओं के साथ, खड़गासन से कायोत्सर्ग में लीन हो गया । अहंशून्य अपने आपको निवेदित पाया। · प्रस्तुत हूँ, जो चाहे मुझे ले। - 'अहो, आत्मन्, पहचान रहा हूँ मित्र, तुम्हें ! तुम्हारी याद आ रही है। : 'तुम्हीं तो अब से पहले के तीसरे जन्म में गोभद्र ब्राह्मण थे । स्वभाव से अकिंचन, सरल, निरीह । सर्व विद्याओं के पारगामी । पर निर्धन । तुम्हारी सुन्दरी ब्राह्मणी गर्भवती हुई। प्रसवकाल समीप पा कर उसने बिनती की, कि कहीं जा कर तुम आवश्यक धनार्जन कर लाओ।'
तुम निकल पड़े धनार्जन के लिए, वाराणसी की राह पर । मार्ग में एक भव्य कान्तिमान विद्या-सिद्ध पुरुष तुम्हारा सहयात्री हुआ । विद्याबल और कात्यायनी के कवच से मंडित वह पुरुष, मंत्रोच्चार मात्र से ठीक समय पर दिव्य भोजनों के थाल प्रस्तुत कर देता । रात्रि शयन के लिये, वह सुन्दरी योगिनियों के साथ, चमत्कारिक वैभव-शृंगार से भरा विमान उपस्थित कर देता । परम लावण्यवती चन्द्रप्रभा नामा योगिनी के साथ वह शैयारमण करते हुए रात्रि व्यतीत करता । चन्द्रप्रभा की बहन चन्द्रलेखा तुम्हारे
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