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'मुझे तो भयानक भूख लगी है, भन्ते । बतायें स्वामिन् , आज मुझे कैसा आहार मिलेगा ?'
'नरमांस · · · !' - मुझे मौन देख कर वह बड़बड़ाया : 'प्रभु तो बोलते नहीं, यह कौन पिशाच बोला ? प्रभु ऐसा कैसे कह सकते हैं ?' __'जहाँ मांस की गन्ध तक नहीं हो, ऐसी ही बस्ती में गोचरी करूँगा। और मिथ्या कर दूंगा यह वचन ।'
· · · देख रहा हूँ : श्रावस्ती के पितृदत्त गृहपति की भार्या श्रीभद्रा के सदा मृतक पुत्र ही आते हैं। शिवदत्त नैमित्तिक ने उसे परामर्श दिया है, कि : 'इस बार मृतक पुत्र आने पर, श्रीभद्रा उसके रुधिर -मांस से दूध, घी, मधु के साथ खीर बनाये। फिर कोई धुलि-धूसरित पगों वाला, सुभग भिक्षुक द्वार पर आ ये, तो उसे उसका आहार कराये। ऐसा करने से आगे वह जीवित सन्तान ही जनेगी। भिक्षुक के आहार कर जाने पर गृह का मुख-द्वार चुनवा कर, दूसरी दिशा में खुलवा देना। ताकि पता लगने पर वह भिक्षुक, लौट कर तेरे गृह को अपनी कोपाग्नि से भस्म न कर दे ।'
देख रहा हूँ : आज श्रीभद्रा की प्रसूति हुई है । निर्देशानुसार वह यथाविधि मृतक शिशु के रुधिर-मांस की खीर बनाकर द्वारापेक्षण कर रही है।... गोशालक को द्वार पर पा कर उसके हर्ष का पार नहीं । उसने उमग कर उसे पायसान का आहार कराया। परम तृप्ति अनुभव करता गोशालक लौट आया।
'भन्ते, आपकी कृपा से उत्तम पायसान्न का आहार पाया । पिशाच की वाणी मिथ्या हो गई। भन्ते जयवन्त हों!'
उसे सुनाई पड़ा : 'अरे ओ लुब्धक, तेरे पेट में नर-शिशु के अवयवों का पायसान्न पड़ा है !
और जो घटित हुआ है, उसका सारा वृत्तांत उसे सुनाई पड़ा। हाय-हाय, यह कैसा अनर्थ । उसकी अंतड़ियाँ विद्रोह कर उठीं। उद्विग्न हो कर उसने वमन कर दिया। उसमें उसे मृत शिशु की उँगलियाँ, केश, नख आदि दिखाई पड़े। क्रोध से फुफकारता वह उस गहिणी के घर की ओर झपटा। उस स्थान पर कोई द्वार न देख, वह बहुत निराश हो गया। आत्मग्लानि से आक्रन्द करते हुए उसने शाप उच्चारित किया : __ 'वह घर जहाँ भी हो, मेरे प्रभु के तप-तेज से जल कर राख हो जाये !'
· · ·घर जलने की प्रतीक्षा में वह उसी बस्ती में व्याकुल हो कर चक्कर काटता रहा । घर तो कोई जला नहीं, उसके शरीर में ही तीव्र दाह जाग
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