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'हलधारी का आदेश लोक में सम्पन्न हो !' देवता फिर आसन पर स्थिर हो मुस्कुरा दिये ।
लोकरव सुनाई पड़ा : . . 'हमारे आराध्य देवता आज मानव-तन में प्रकट हो गये। पूर्वे ऐसा तो कभी हुआ नहीं । शताब्दियों में कभी सुना नहीं गया कि यहाँ हलधारी बलराम स्वयम् बिराजमान हैं। धन्य भाग · धन्यभाग।'
'जय बलदेवा, जय हलधारी ! . . .
· · हर्षावेग में बेभान गाते-नाचते हुए वे सारे लोकजन श्रमण की आरती उतारने लगे। मुझे किंचित् कौतूहल की हँसी आ गई : 'अरे मनुष्यो, कब तक यों देवताओं का सहारा लेते फिरोगे? अपने भीतर बैठे देवता को नहीं पहचानोगे ? मैं वही तो हूँ...!'
लेकिन पूजा-प्रवाह का अन्त नहीं है। अपने बालकों के हत्यारे गोशालक को भी बलदेव का सेवक स्वीकार कर लिया उन्होंने । · · 'अरे हमारे पापों से हमें डराने को भगवान ने अपना भेड़िया हमारे बालकों पर छोड़ दिया था !'
सो देवता के साथ उनका दण्डधारी भेड़िया भी पुजने लगा। लगा कि अविकल्प श्रद्धा की इस माटी में तो मेरा हल गहरी से गहरी भूमि काट सकेगा! • • •
चोराक ग्राम के जम्बूवन तले अकारण ही चंक्रमण कर रहा हूँ। देखना चाहता हूँ, चलते समय मेरे पैर कहाँ पड़ते हैं । भूतल पर रेंगते अनेक सूक्ष्म जीवों के आवागमन में दृष्टि रम्माण हो गई । लगा कि विदेह हुआ जा रहा हूँ। पैर मेरे धरती पर पड़ ही नहीं रहे। नितान्त चेतना-प्रवाह हो कर, उन असंख्यात् जीवों की किंचित् देहों में संचरित हूँ ! · · ·इस सुख का पार नहीं ।
गोशाले को सदा भख लगी रहती है। और वह प्रायः गोचरी पर ही होता है । यहाँ भी वह अन्न की खोज में गया है । देख रहा हूँ : एक अमराई तले कुछ ग्राम-युवकों ने गोठ का आयोजन किया है। दाल, बाटी, चूरमे के वनभोजन का पाक हो रहा है। पांतरे के ताज़ा घी की सुगन्ध से वनभूमि महक उठी है । भोजन-रस-लुब्ध गोशालक किसी आम्र वृक्ष के तने की ओट छुप कर गहरे भोजन-ध्यान में लवलीन है। टुकुर-टुकुर ताक रहा है कि कव भोजन तैयार हो, और कब वह जा कर भिक्षा के लिये कर-पान पसार दे । ___ इस गाँव में आजकल चोरों का भय व्याप्त है । सो एक चौकसी पर बैठे युवक ने गोशाले को छुपे हुए देख लिया। 'चोर' - 'चोर' चिल्लाता हुआ वह उस पर झपटा । साथ ही और लोग भी झपट पड़े।
'अरे यह तो निरा भोला-भाला नंगा छोकड़ा है। इसकी क्या बिसात कि चोरी करे। किसी चोर का चर जान पड़ता है।'
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