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उठी । छटपटाता हुआ वह आकर मुझ से बोला :
'क्या मेरे प्रभु का तप-तेज मिथ्या है, जो मेरा वचन मिथ्या हो गया पड़ता है नियति ही एक मात्र सत्य है । और सारे तप- तेज भ्रांति है । '
'नियति से भी अधिक शक्तिमान है यति, संयति । वह नियति को भी जय कर सकता है, उसे मन चाही मोड़ सकता है । अपने को देख, सौम्य, अपने को देख !
'मैं चल पड़ा। अन्यमनस्क गोशालक भी मेरे पीछे-पीछे चलने लगा । हरिदु ग्राम के परिसर में आकर हरिद्र वृक्ष के नीचे प्रतिमा-योग से ध्यानस्थ हो गया हूँ । उसी छतनार वृक्ष की छाया में एक ओर श्रावस्ती की तरफ़ जा रहा कोई बड़ा सार्थ उतारा किये है । रात में शीत के आघातों से बचने के लिये उन्होंने वन-काष्ठों की भारी अग्नि प्रज्ज्वलित की थी । सबेरे उठ कर प्रस्थान की उतावली में सार्थवाह उस अग्नि को बुझाये बिना ही चल दिये । तभी हेमन्ती हवा की एक तेज़ आँधी उठ आई । समुद्र - गर्भ में प्रसुप्त बड़वानल की तरह वह अग्नि भभक उठी, और बाढ़ की तरह फैल कर उसकी लपटें मेरे पैरों को चूमने लगीं। उस दाह के समक्ष मैंने अपनी देह में एक अद्भुत स्थिरता अनुभव की । गोशालक कोलाहल कर उठा :
!'
'अरे प्रभु, भागो, भागो यहाँ से, भयंकर अग्निकांड ने हमें घेर लिया है
कह कर वह काक पक्षी की तरह वहाँ से पलायन कर गया । पर मेरे भीतर उठ रही ध्यानाग्नि ने सामने उठ रहे हुताशन का आलिंगन किया। भीतर के कितने ही कृतान्त कर्मचक्रों को मैंने उसमें भस्मसात् होते देखा ।
आँखें खुलीं तो देखा, कि मेरे दोनों पैर झुलस कर कलौंछे हो गये हैं । मैं क्षणैक उनकी उस पर्याय को व्यतीत होते देखता रहा । ' सहसा ही पाया कि वहाँ श्रमण के पैर नहीं रहे । वे आगे जा चुके हैं। दो कमल-कोश तुषारपात से कुम्हलाये हुए वहाँ पड़े हैं ।
आवर्त्तग्राम के बलदेव मन्दिर में चला आया हूँ । पूर्वाह्निक पूजा-भोग समापित करके पुजारी और दर्शनार्थी जा चुके हैं। जन-शून्य मन्दिर के देवकक्ष में प्रवेश कर, एक अन्तरित कोने में खड़ा हो गया हूँ । मन्द दीपालोक में देव-प्रतिमा सजीवन हो आई । सौम्य मुस्कान के साथ हलधारी ने मानो' मुझे टोका
'सुनता हूं, युगन्धर हो ! पर तुम तो कायोत्सर्ग की निष्क्रिय मुद्रा में स्थिरीभूत हो । बाहर से मुंह फेर कर अपने में लवलीन हो । जिन हो कर सिद्धालय में ही जा बैठना चाहते हो ? जन नायक हो कर जनालय के 'दुःखान्धकार में
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