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_ 'पियो' . 'पियो, चंडकौशिक ! कितना प्यार उमड़ रहा है, तुम्हारे फणों के इस परिरम्भण में, तुम्हारे दंशों के इन अंतहीन चुम्बनों में । चुकाओ अपनी चिरकाल की संचित महावासना को मेरे भीतर । लो, मुझे लो, मुझे लेते ही चले जाओ, चण्डकौशिक । ताकि मैं समूचा तुम्हारा हो जाऊँ। मैं तुम्हारे ही लिए जन्मा हूँ। यह काया तुम्हारा अन्तिम आहार होने के लिए ही जन्मी है। कितने स्वाद और प्यार से पी रहे हो तुम मेरा रक्त । कैसी गहरी मुक्ति के मुख से तुमने मेरी नस-नस की गाँठे खोल दी हैं . . .।'
अरे बस, इतने से ही तृप्त हो गये ? · · · नन्हे वालक की तरह निरीह , रुदन-कातर आँखों से मुझे ताक रहे हो । कितने कोमल, कितने मधुर, कितने निर्दोष लगते हो तुम, कौशिक !
'अरे मेरी जाँघों और वक्ष पर दिये तुम्हारे दंशों के चुम्बनों से यह कैसा उजला दूध झर रहा है ! पा गया मैं तुम्हारा प्यार। तुमने मेरे रक्त को दूध में परिणत कर दिया ? · . 'तुमने मुझे कृतार्थ कर दिया। कितना कृतज्ञ हूँ तुम्हारा !'
_ 'चण्डकौशिक, मेरे वत्स, तुम कितने सौम्य, सयाने, शान्त हो गये । कैसा मार्दव उफन आया है, तुम्हारे इन मोरपंखी फनों की काली चिन्तामणि आँखों में . । ___ 'इधर देखो मेरी ओर · · · । कौशिक, · · · बुज्झह · · बुज्झह !
'जाने कितने जन्मों से आत्मघात करते चले आ रहे हो । याद करो अपनी अहं-बंदी यातनाएँ · · नहीं, अब तुम्हें वे कभी नहीं व्यापेंगी। अब अपने को यों तिल-तिल मारोगे नहीं, सौम्य, सताओगे नहीं · · ·। देखो, मैं हूँ न . फिर
और क्या चाहिये तुम्हें । अपने को प्यार करो, कौशिक · · · देखो मेरी ओर · · ।' ___मैं नितान्त नीरव, निस्पन्द दृष्टि से यह सब केवल देख और सुन रहा था। केवल एक अकल, क्रियातीत साक्षी.।
___· हौले हौले लोगों को अपने आप ही एक अभय भाव की प्रतीति हो गई। वे बेखटक, निरापद मुझे टोहते यक्ष-मण्डप की ओर आ निकले । सर्पराज चण्डकौशिक को उन्होंने परम शान्त भाव से श्रमण के चरणों में विश्रब्ध देखा । आनन्द और आश्चर्य से वे पुलकित और स्तब्ध हो रहे । सब के मन सर्व के प्रति करुणा और प्यार से उमड़ आये । आसपास के स्त्री-पुरुष, वृद्धजन, बालक झुंड के झुंड आने लगे। सहज भाव से वे सर्वराज की विशाल और निश्चिन्त पड़ी काया को हाथ फेर कर पुचकार देते। उन सब के मनों में उससे गहरी शान्ति और प्रीति का प्लावन अनुभव होता। ग्रामांगनाएँ और कुमारियाँ नित्य पूजा-थाल लिये आतीं । वे श्रमण की पूजा-वंदना करने के उपरान्त सर्प देवता की भी आरती उतारती ।
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