________________
लोक के नित-नूतन द्वार खुलते जा रहे हैं । देख रहा हूँ, लोक के भीतर लोक है,
और उसके भीतर अनेक लोकान्तर हैं । अन्त नहीं। . 'प्रत्येक परमाणु के भीतर संख्यानुबंधी लोक-सृष्टियाँ हैं । और हर सृष्टि के उत्स में कई-कई सृष्टियाँ । जानने का अन्त नहीं। स्वयम् अनन्त हुए बिना इस अनन्त को कैसे जाना जा सकता है ? भयानक है इस साक्षात्कार की रमणीयता ! परात्पर है यह सौन्दर्य ! • • •
सहसा ही तन्मयता भंग हुई । बाहर नाव में बैठे मनुज तुमुल कोलाहल के साथ हाहाकार कर रहे हैं । आर्त विलाप के साथ अपने-अपने इष्ट देवों के नामोच्चार कर रहे हैं। खेमिल की सब से ऊँची आवाज़ पुकार रही है : 'त्राहि माम् योगिराट्, त्राहि माम् !'
पर्वत पर पर्वत, और उल्का पर उल्का की तरह उत्तुंग लहरें नाव पर टूट रही हैं। मेरी अविचलता उतनी ही अधिक बढ़ती जा रही है । नाव के छोर पर ऊर्ध्वबाहु मेरु-निश्चल खड़ा मैं विनाश की इस लीला का मात्र दृष्टा रह गया हूँ । अक्रिय और अभय इस आक्रान्ति को समर्पित हो गया हूँ। डाँड़ चलाते पंक्ति-बद्ध मल्लाह डाँड़ छोड़ कर नाव में गुड़ी-मुड़ी हो पड़ गये हैं। पाल फट गया है। उसका मेरुदण्ड उध्वस्त होकर जाने कब का गिर चुका है । नाव के मुदृढ़ पटिये तड़तड़ा कर फट पड़ने की धमकी दे रहे हैं । तूफान में झक-झोले खाती नाव अब-डूबी, अब-डूबी हो रही है। नाव में भर आये विपुल जल के तरंगाघातों में मानवों की चीत्कारें डूबती जा रही हैं । अकेला सिद्धदन्त मेरे कोणस्थ पगों पर कस कर लिपटा हुआ है । · · ·और मुझ पर चारों ओर से विकराल जलचर आक्रमण कर रहे हैं ।
सर्वनाश के इस सीमान्त पर, सहसा ही बाहरी सृष्टि मेरी आँखों के सामने से ओझल हो गई । वस्तु-जगत विलुप्त हो गया। निविषय ध्यान की गहन तल्लीनता में, मेरी चेतना अन्तर्मग्न, उन्मग्न हो गई । अपने सिवा और कुछ देखने की इच्छा नहीं रह गई है । अपने सिवाय और कुछ देखना सम्भव ही नहीं रह गया है । . कि देखता हूँ, सब कुछ आपोआप दिखाई दे रहा है । जल-तत्व ने समर्पित हो कर अपनी तहों में पड़ी सृष्टियों के तुमुल संघर्ष सम्मुख प्रत्यक्ष कर दिये हैं।
हठात् जल की अन्तिम तह में से एक वातायन खुल पड़ा। ·ओह, नागकुमार जाति के जल-देवों का लोक ! उसमें से दण्डायमान हो कर एक भीषण दानवाकार जलाकृति मुझे चहुँ ओर से आवेप्ठिन करती दिखाई पड़ी। पानिल गहराव में से एक उद्दण्ड आवाज़ की गर्जना हुई : .
'ओरे ओ उद्धत, तेरी यह मजाल, जो तूने मेरे इस एकराट् जल-साम्राज्य में प्रवेश करने का दुःसाहस किया है ! . . .'
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org