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चम्पा नगरी की ओर आ निकला हूँ। सुना है, पूर्व के समुद्रपाल राजा दधिवाहन मगध के आक्रमण से अपने राज्य की रक्षा के लिये लड़ते हुए चम्पा के दुर्ग-द्वार पर काम आ गये। अजातशत्रु और वर्षाकार यहाँ आधिपत्य जमाये, वैशाली पर आक्रमण करने का कूटचक्र रच रहे हैं। - महारानी पद्मावती और शील-चन्दना महावीर की शरण खोजने श्रावस्ती की ओर चली गई हैं। नियति के चक्रव्यूह पर खड़े हो कर, चम्पा को एक निगाह देखा। फिर, महावीर ने श्रावस्ती की ओर उद्बोधन का हाथ उठा दिया।
_आकाश में बादल गरजने लगे हैं। धरती ने दरक कर प्यासे ओंठ ऊपर उठा दिये हैं। अन्नमय कोश को कंचुक की तरह उतार फेंका। और चन्दना तट के एक दुर्गम कान्तार में वर्षायोग सम्पन्न करने को, समाधिस्थ हो गया हूँ। आरात्रि-दिवस बरसती वृष्टिधाराओं, और समुद्री तूफानों तले निश्चल खड़ा हूँ। और यावन्मात्र जीव-सृष्टि की नूतन सर्जन-प्रजनन प्रक्रिया के इस पर्व में तल्लीन हो गया हूँ। पृथ्वी, जल, वनस्पति के इन निविड़ राज्यों के गहन अंधियारों से पार हो रहा हूँ। जीवों की आबद्ध आत्माओं के भीतर छाये, कर्मों के जटा-जूट शाखा-जालों का अन्त नहीं है। आग्नेय चक्र की तरह अपनी चेतना को, इस आलजाल में फँसती ही चली जाती देख रहा हूँ। · पर यह कौन है, जो दुर्गम और भयानक अरण्य की त्रिशूलाकार शिला पर अविचल बैठा है।
• वर्षायोग की समाप्ति पर, चम्पा के बाहर, पुंडरीक चैत्य में प्रतिमायोग से अवस्थित हूँ। चम्पा-दुर्ग की सब से ऊँची बुर्ज पर, एक सुवर्ण के मारीच दानव को अट्टहास करते सुन रहा हूँ। · · अरिहन्तों की आदिकालीन विहारनगरी चम्पा, जाग · · ‘जाग · · जाग · · !
चम्पा से प्रस्थान कर रहा था कि गोशालक को फिर छाया की तरह अनुगामी पाया । साँझ होते, कोल्लाग ग्राम पहोंच कर बाहर के एक शून्य गृह में वास किया। रात्रि घिर आई । चिर परित्यक्त शून्य गृह के एक कोने में प्रतिमायोग से ध्यानस्थ हूँ। द्वारा पर गोशालक चपल वानर की तरह चंक्रमण कर रहा है। तभी ग्राम के स्वामी का सिंह नामा एक पुत्र अपनी अभिनव यौवना दासी विद्युन्मति के साथ एकान्त में केलि-क्रीड़ा करने को शून्यगृह में प्रविष्ट हुआ। उच्च स्वर में उसने पुकारा : ___ 'यहाँ कोई साधु, ब्राह्मण या यात्रालु हो तो वोले । ताकि हम अन्यत्र चले जायें !' ____ अँधेरे में छुप-छुपे गोशालक विद्युन्मति को देख कर गलदश्रु हो आया। उसके जी में मीठी-मीठी धुकधुकी होने लगी। एक मधुर जिज्ञासा से उसका सारा प्राण कातर हो आया । सो वह कुतूहली अपनी जगह गुपचुप हो रहा ।
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