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चारकोति
कुछ विवादों का अधिकारियो द्वारा निर्णय दिये जाने का पार्श्वनाथ मन्दिर के लिए शंकरसेटि ने कुछ दान दिया वर्णन है (भाग ३ पृ० ३६३)।
था जो अभिनव चारुकीर्ति पण्डित के प्राज्ञावर्ती सेटिनौवा उल्लेख गेर सोप्पे के शक १३२३ सन १४०१ कारो को सौपा गया था। (भाग ४ पृ. ३२६-७)।
क समाधिलेख में है। इसमे नगिरपुर के सामन्त चौदहवां उल्लेख चिक्कहनसोगे के सन १५८५ के मंगरस के स्वर्गवास का वर्णन है । लेख टूटा होने से इसमे शिलालेख में है। इसके अनुमार चारुकीर्ति पण्डित के जो चारुकीर्ति पण्डित का नाम है उसका पूर्वापर सम्बन्ध शिष्य पण्डितय्य द्वारा तीन जिनमूर्तियो की स्थापना की अस्पष्ट है (भाग ४ पृ० २६७ ।।
गई थी (भाग ४ १० ३३१) । दसवा उल्लेख श्रवणबेलगुल के दो लेखो मे है जिनका
पन्द्रहवा उल्लेख श्रवणबेलगुल के शक १५५६ सन समय शक १३६०सन १३६८ तथा शक १३५५=सन
१६३४ के शिलालेख मे है। इसके अनुसार बेलगुल के १४३३ है। इसमें वर्णित चारुकीर्ति देशीगण की इगलेश्वर- मटिको मनि गिरती वी गई थी। गजा चाurna वलि के श्रनकीर्ति के शिष्य थे।
वोडेयर के कहने पर तथा चारुकीर्ति पण्डित के समक्ष लेखो मे चारुकीर्ति के शिष्य पण्डितयति, पण्डितयति
चेन्नण प्रादि सेठो ने इस सम्पत्ति को ऋणमुक्त कर दिया के शिष्य सिद्धान्तयोगी और सिद्धान्तयोगी के शिष्य श्रुत
थ। (भाग ११ १६८)। मुनि की प्रशमा है । थुनमुनि का स्वर्गवास शक १३५५
सोलहवा उल्लेख मूडविदुरे के शक १५६२ सन मे हुअा था । प्रत इस लेख में वणित चारुकीति का समय
१६४१ के ताम्रपत्र में है। इसके अनुसार अभिनव चारसन १३५० के पास पास पनीन होता है। इन चारुकोति
कीर्ति तथा उनके शिष्यवर्ग को चिक्कराय प्रोडयर द्वारा के वर्णन मे सारत्रय, युक्तिशास्त्र और शब्दविद्या मे
मुरक्षा का प्राश्वासन दिया गया था (भाग ४१० ३४१) । उनकी प्रवीण ना की प्रशमा है तथा बल्लाल राज को
सत्रहवा उल्लेख श्रवणबेलगुल के एक समाधिलेख में नीरोग करने का थेय भी उन्हे दिया गया है (भाग १
है। इसके अनुसार शक १५६५-मन १६४३ में चार कीर्ति पृ० २१३ तथा २०३)।
पन्डित का स्वर्गवास हुआ था (भाग १ पृ० २६३) । ___ ग्यारहवां उल्लेख मूडबिदुरे के एक ताम्रपत्र का है
अठारहवां उल्लेख श्रवणबेलगुल के एक मूर्तिलेख में जिसका समय गक १४२६ मन १५०४ है। इसमें कदम्ब
है। इसके अनुमार कारजा के भट्टारक धमचन्द्र तथा कुल के शासक लक्ष्मप्पस अपरनाम भैरस द्वारा जैनो के
चारुकीर्ति पण्डित के उपदेश से शक १५७० मन १६४८ ७२ मस्थानो के प्रधानाचार्य चारुकीर्ति के एक शिष्य को अपने राज्य के एक भाग के धार्मिक अधिकार प्रदान में यह मूति स्थापित की गई थी (भाग ११० २२६)। किये जाने का वर्णन है (भाग ४ पृ० ३१३) ।
उन्नीसवा उल्लेख श्रीरगपट्टम के मन १६६६ के एक बारहवा उल्लेख अजनगिरि के शक १४६६सन शिलालेख में है। इसके अनुसार चारुकीर्ति पण्डित के १५४४ के एक लेख मे है। इसके अनुसार देशीगण- शिष्य पायण्ण ने अष्टान्हिका महोत्सव के लिए कुछ दान इंगुलेश्वरबलि के बेलगुलपूर के चारुकीर्ति पण्डित के दिया था (भाग ४ पृ० ३४३) । प्रशिष्य के शिष्य अभिनव चारुकी ति पन्डित थे। इनके बीसमा उल्लेख मदने ग्राम के शक १५६५=सन शिष्य शान्तिकीति थे जिन्होने सुवर्णावती नदी से प्राप्त १६७३ के एक शिलालेख में है। इसके अनुसार बेलगुल दो जिनबिम्बो की प्रतिष्ठा के लिए एक मन्दिर बनवाया के चारुकीर्ति पण्डित को मैमूर के देवराज पौडेयर ने मदने था तथा उसके लिए चन्दा एकत्र किया था (भाग ३ ग्राम दान दिया था (भाग ३ १० ५६६) । पृ० ५३०-३३)।
इक्कीसवा उल्लेग्व मूडबिदुरे के शक १६७९सन तेरहवां उल्लेख मूडबिदुरे के शक १४८५=सन १५६३ १७५७ के एक ताम्रपत्र में है। इसके अनुसार हम्मडि के ताम्रपत्र में है। इसके अनुसार मूडबिदुरे के चण्डोन
[शेष पृ० ६२ पर]