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श्री अंतरिक्ष पार्श्वनाथ वस्ती मंदिर
तथा मूलनायक मूर्ति-शिरपुर पं० नेमचंद पन्नूसा जैन न्यायतीर्थ
शिरपुर के अन्तरीक्ष पार्श्वनाथ का मन्दिर ऐतिहासिक किया।" मादिर दृष्टि से महत्वपूर्ण है यह भली भाति स्पष्ट है। अनेकान्त इस रिपोर्ट की घटनामो का समय माज में करीबन वर्ष २० किरण २ मे शिरपुर के पवली मन्दिर के सम्बन्ध १५० साल पहले का यानी ई. स. १८२० से २६ तक मे प्रकाश डाला गया है। प्रस्तुत लेख मे बहा के वस्ती का है। इस रिपोर्ट से हम इस बात मे निशक हो गये मन्दिर पौर मूल नायक मूर्ति के सम्बन्ध में कुछ ज्ञातव्य कि, यद्यपि हेमाडपंथी पवली दिगंबर जैन मन्दिर श्री इतिवृत्त दिया जा रहा है। प्राशा है पाठकगण उम पर अंतरिक्ष पाश्र्वनाथ की प्रतिमा के लिये बनाया गया था, विचार करेंगे।
तथापि उम मन्दिर मे यह प्रतिमा अाज तक विराजमान "ऐमा बताया जाता है कि, यहां का पुराना मन्दिर नहीं हुई। भी ४० साल पहले बनवाया गया था। अब वह खाली प्रब रही बात इस रिपोर्ट के प्रारम्भ मे जो उल्लेख है। यहा के पुजारी लाड या जैन है।"
पाया है-पूराना मन्दिर भी ४० साल पहले बनवाया ई.सं. १८६८ में अकोला जिले के एक सरकारी गया, इसका अर्थ इमी लेख में विस्तार के साथ भागे प्रादमी ने शिरपुर के श्री अतरिक्ष पार्श्वनाथ दिगंबर पायेगा ही। जैन मन्दिर को भेट दी थी। पर वहां के वद्ध लोगो से तथा इस नये वस्ती मन्दिर के कर्तत्व के बारे में मिलकर क्षेत्र के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त की थी। स्पष्ट उल्लेख है कि खामगाव जि. बुलढाणा के श्रावगी वह उमकी रिपोर्ट में ऊपर के मजकूर के साथ और भी कलोत्पन्न दिगबर जैन श्रावकों ने यह मन्दिर तथा धर्मलिखता है
शाला का निर्माण किया । इससे भी यही स्पष्ट हुमा कि "इम नये मन्दिर का भी निर्माण प्रदाजा चालीस यह मन्दिर-मन्दिर की मूर्ति तथा सबधित धर्मशालाए साल पहले ही हया है। उसके बाद उस पुराने मन्दिर से दिगवर जैन समाज की ही देन है। पवली मन्दिर का इस नये मन्दिर मे मूति का स्थानांतर किया गया। वह वास्त. शिल्प और कला देखकर यह ही निर्णय हुमा है। प्रमंग यहा के वृद्धो को अच्छी तरह याद है।
इसकी चर्चा २-३ प्रको मे की गई है। उस पर से भी "उम महामगल उत्सव के मुखिया ये खामगाव इम मन्दिर के साथ मूलनायक की मूर्ति का स्वरूप दिगबर निवामी सेठ पोकारदासजी श्रावगी तथा उनके पिताजी। ही सिद्ध होता है। उन्होंने ही यहा की बडी न. १ की धर्मशाला बनवायी
तथापि इस मन्दिर की अधिक जानकारी के लिये है। तथा उनके द्वारा यहा के महाद्वार का काम प्रभी
म प्रभा यहा की रचना का तथा रचनाकारो का इतिहास प्रापके अधूरा ही था। [जिसे उनके पुत्र मेठ दुलीचद जी ने पूरा सामने रखता है। किया है।
यह है वह महाद्वार, जिसका काम पूरा होते ही सेठ "यहां का पानाथी (हेमाडपथी) मन्दिर बहुत
दुलीचद जी प्रोकारदास जी थावगी ने ई.स. १८८५ पुराना है। वह प्राज तक कभी भी पूरा नहीं हुपा । दो
' में चार कुड की पूजा की थी। इस समय तक यहा हर दफे चूना, विटो मे मरम्मत की गई। लेकिन माज भी वह अधूरा ही है। यहा के पुजारी कहते है कि इस मन्दिर मे १ अधिक स्पष्टी करण के रिए प्रकोला के इनाम बुक अंतरिक्ष पार्श्वनाथ की मूर्ति ने मान तक प्रवेश ही नही के इनाम साटिफिकेट देखिये ।