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केशि-गौतम-संवाद
केशि-वे अग्नियां कौन-सी कही गई है ?
गौतम-जरा और मरण ही वह जल का वेग है। गौतम-- कषाये अग्नि कही गई है और श्रुत-तद्गत उससे डूबने वाले प्राणियों को धर्म ही द्वीप है, जो स्थिर सदुपदेश, शील (महाव्रत) एव तप-को जल कहा गया है। प्रवस्थान का कारण होता हुमा उस वेग को रोककर इस प्रकार श्रुतधारा से अभिहत होकर विनाश को प्राप्त प्राणियो की रक्षा करता है। वही द्वीप उत्तम है। होती हुई वे अग्नियां मुझे नही जलाती है । (४६-५३) (६४-६८)।
७ केशि-सहसा प्रवर्तमान यह भयानक दुष्ट घोडा १० केशि-विशाल जलप्रवाह से परिपूर्ण समुद्र तुम्हारे अभिमुख दौड रहा है। उसके ऊपर सवार होकर मे नाव, जिस पर तुम प्रारूढ हो, वेग से भाग रही है। तुम उसके द्वारा कैसे अपहृत नही किये जाते हो? उससे भला तुम कैसे पार पहुँचोगे ?
गौतम-उस दौडते हए दुप्ट घोडे का मै श्रुतरूप गौतम-जो नाव प्रास्रवयुक्त है-जल का संग्रह रश्मि (लगाम) को लगाकर निग्रह करता हूँ। इसमे वह करने वाली है-वह पार जाने वाली नही है, परन्तु जो उन्मार्ग में न जाकर समीचीन मार्ग को प्राप्त होता है। उस प्रास्रव से रहित है वह तो पार जाने वाली है। केशि-वह घोडा कौन-सा कहा गया है ?
केशि-वह नाव कौन-सी कहो गई है ? गौतम–सहसा प्रवृत्त होने वाला वह दुष्ट भयानक
गौतम-शरीर नाव और जीव नाविक-उस नाव घोडा मन है जो मेरे अभिमुग्व दोड़ता है--- राग-द्वेप में
पर प्रारूढ- कहा जाता है; तथा ससार समुद्र है, जिसे प्रवृत्त करना चाहता है। म जात्य अश्व के समान उस मपि जन पार किया करते है। घोडे का धर्मशिक्षा के द्वारा निग्रह किया करता हूँ।
अभिप्राय यह कि जो शरीर कर्मास्रव से मयुक्त होता (५४-५८)।
है वह मुक्ति का साधक नही हो सकता है; मुक्ति का ८ केशि-लोक मे कुमार्ग बहुत-से है, जिनके आश्रय
साधक तो वही शरीर होता है जो उस कर्मास्रव से रहिन से प्राणी नष्ट होते है। हे गौतम । ऐसे मार्ग मे स्थित
हो जाता है। (६६-७३) रहकर भी तुम क्यो नही विनष्ट होते हा ' ।
११ केशि-बहुत-से प्राणी अन्धा कर देने वाले भया__गौतम-जो मार्ग से जाते है, और जो कुमार्ग के
नक अन्धकार में स्थित है। उन प्राणियो को समस्त लोक पथिक (यात्री) है वे सब मुझे ज्ञात है; इसी से हे मुने ।
में कौन प्रकाश करेगा? में नष्ट नही होता हूँ।
गौतम-जो निर्मल सूर्य उदित होकर सब लोक को ___ केशि-मार्ग कौन-से कहे गये है और कुमार्ग कौन-से
प्रकाशयुक्त करने वाला है वह समस्त लोक में प्राणियों को कहे गये है ?
प्रकाश करेगा। गौतम-कुप्रवचन और पाखण्डी ये सब कुमार्ग मे स्थित है और जो जिनोपदिष्ट सन्मार्ग है वही उत्तम मार्ग
केशि-वह भानु (सूर्य) कौन कहा गया है ? है। (५६-६३)
गौतम--समस्त पदार्थों का ज्ञाता (सर्वज्ञ) जो जिन ६ केशि-हे गौतम ! जल के प्रबल वेग से डबते देवरूप सूर्य उदित होकर ससार का विनाश करने वाला हुए प्राणियों की रक्षा करने वाला व उसकी गति को है वह सभी लोक मे प्राणियो को प्रकाश करेगा-उन्हे गेकने वाला द्वीप तुम किसे समझते हो ?
अपने सदुपदेश के द्वारा सन्मार्ग दिखलावेगा, जिसके प्राश्रय गौतम-जल के मध्य में विशाल भवनो से वेष्टित से वे मसार का विनाश कर सकेंगे। (७४--७८) एक द्वीप है जहां उस प्रबल जल के वेग की गति (प्रवेश) १२ केशि-हे मुने ! शारीरिक और मानसिक नही है।
दुखों के द्वारा बांधे जाने वाले-उनसे पीड़ित--प्राणियों केशि-वह द्वीप कौन-सा कहा गया है ?
के लिए तुम क्षेम- व्याधिविहीन, शिव-समस्त उपद्रवों से