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कारी तलाई को जैनमूतियाँ
श्री पं० गोपीलाल 'प्रमर' एम. ए.
स्थान-परिचय
लगभग १८५० ई० में यहाँ के बागह मन्दिर मे सं० १७४ कारी तलाई' का प्राचीन नाम कर्णपुर या कर्णपुरा का एक शिलालेख प्राप्त हुया था। कलचुरि-काल के है। यह कैमूर पर्वत श्रेणियों के पूर्व मे, जबलपुर जिले तीन शिलालेख और प्राप्त हुए । इनमे से तीसरा रायपुर की कटनी मुडवारा तहसील मे महियार से दक्षिण पूर्व में मग्रहालय में सुरक्षित है जिससे ज्ञात होता है कि कलचुरि २२ मील और उचहरा से दक्षिण मे ३१ मील पर काल में कारी तलाई को मोमस्वामिपुर भी कहा जाता स्थित है। पर्वत के किनारे यहाँ अनेक हिन्दू और जैन था। इनके अतिरिक्त दो अन्य शिलालेख भी यहाँ प्राप्त मन्दिरों के अवशेष विद्यमान है। इन अवशेषो के पूर्व में हुए हैं। जिनमें से प्रथम शइकु लिपि में उत्कीर्ण है और लगभग प्राधा मील लम्बा एक सागर नामक तालाब है- दूसरे में महाराज वीर गजदेव का नाम तथा स० १४१२ जिसके किनारे देशी पाषाण की अनेक अर्घनिर्मित जैन वि० उत्कीर्ण है। उत्तर-कलचुरि काल में भी कारी तलाई मतियाँ बिखरी हैं। कारी तलाई के मन्दिरो की सामग्री का महत्त्व रहा, इसके प्रमाण है । स्थानीय पं० रामप्रपन्न और मूर्तियाँ बहुत बड़ी मात्रा मे इसी स्थान पर बिखरी जी के संग्रह में एक ताम्रपत्र है-जिसके अनुसार १८वी पडी है और कुछ जबलपुर तथा रायपुर के संग्रहालयो मे शती मे उनके पूर्वजो को मैहर राजा के भाई ने नौ ग्रामो सुरक्षित कर दी गई है । कहा जाता है कि विजयराघोगढ के उपाध्याय (पुरोहित) का पद दिया था। के किले का निर्माण कारी तलाई के प्राचीन पत्थरो से ध्वंसावशेष हमा था'। १८७४-७५ में श्री कनिघमने यहाँ का अत्यन्त यह स्थान कलिचरि कालीन अवशेषों के लिए विशेष सक्षिप्त सर्वेक्षण किया था। फिर श्री बालचन्द्र जैन ने प्रसिद्ध है पर सूक्ष्म निरीक्षण करने पर प्रतीत होता है कि १९५८ ई. के लगभग यहाँ का विस्तृत सर्वेक्षण किया यहाँ यी-वी शती के प्रोष भी विटाम
यहाँ ७वी-८वी शती के अवशेष भी विद्यमान है। विभिन्न और कई महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले।
स्थानों पर ग्रामवासियों ने ईटे और पत्थर प्राप्त करने के स्थान की प्राचीनता
लिए खुदाई की है जिसमे कम से कम ८ फुट नीचे तक कारी तलाई की उन्नति कलचुरि-काल में सवाधिक इंटो की दीवाले प्राप्त हुई है। यदि इस स्थान का सिलई पर उसका इतिहास काफी प्राचीन है। यहाँ की कुछ सिलवार उत्खनन किया जाए तो अाश्चर्य नही जो यहाँ गफानोंमें २००० वर्ष प्राचीन ब्राह्मी अभिलेख प्राप्त हुए है' मौर्यकालीन अवशेष भी प्राप्त हो। १. श्री कनिंघम ने इसका उच्चारण 'कारि-तालई' माना मूर्तियाँ है। ए पार, ए. एस. पाई, जिल्द ६, पृ०७।
कलचुरि काल मे कारी तलाई जैनो का महत्त्वपूर्ण २. वही।
केन्द्र तथा तीर्थ स्थान था। यहाँ कम से कम छह जैन ३. जैन बालचन्द्र : कारी तलाई का कला वैभव : जैन मन्दिरों का निर्माण हुआ था । यहाँ तीर्थकरों और शासन
सन्देश १६।१११६५६ । ४. श्री कनिंघम की उपर्युक्त जिल्द ।
७. श्री कनिंघम ने इसे गुप्त संवत् माना है। दे० वही। ५. रायपुर संग्रहालय के पुरातत्त्व उपविभागकी प्रदर्शिका ८. १८७४-७५ ई० में यह शिलालेख भी कनियम के भाग १-२।
अधिकार में था। जन बालचन्द्र : उपर्युक्त लेख ।
६. जैन बालचन्द्र : उपर्युक्त लेख ।
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