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बादामी चालुक्य अभिलेखों में वर्णित जैन सम्प्रदाय तथा प्राचार्य
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किया जा सकता है।
__ है कि चालुक्य साम्राज्य में जैनधर्म का पर्याप्त प्रचार १२ विनयनन्दि :--प्राचार्य विनयनन्दि का उल्लेख था। राजानों की ओर से भी उन्हे उत्साह तथा सहयोग अडर अभिलेख मे मिलता है । इन्हे परलूरगण का अग्रणी मिलता था। इसी धर्म निरपेक्ष दृष्टिकोण के कारण जैन बताया गया है। परलूरगण सम्भवत एक अप्रचलित गण धर्म के परिश्रमी प्रचारक इस क्षेत्र मे जैनधर्म का अनेक था। अत. इन प्राचार्य के विषय मे अधिक सामग्री और शताब्दियों पूर्व प्रचार कर सके थे । इस विषय के मनीपरम्परानों का प्रभाव है । अभिलेख के आधार पर इनका षियो को चिन्तन तथा अध्ययन की पर्याप्त सुविधाएं प्राप्त समय ६ठी-७वी शताब्दी के बीच मे रखा जा सकता है। थीं फलतः वे अपने विश्वास का पूर्ण निष्ठा के साथ प्रचार
उपर्युक्त प्राचार्यों के अलावा कुछ अन्य नामो का कर सके । राजवश के अनेक सदस्य उनके सात्विक विचारों उल्लेख इन अभिलेखों मे मिलता है, उदाहरणार्थ-इन्द्र- से पर्याप्त प्रभावित थे । चालुक्य सम्राट विनयादित्य का भूति तथा रविशर्मा इत्यादि । उपलब्ध साक्ष्यो मे इनके पुरोहित स्वयम् एक जैन आचार्य था। इससे राज दरबार विषय मे समग्री का प्रभाव है अत इस सन्दर्भ की कोई में जैन सिद्धान्तो के सम्मान और प्रतिष्ठा का प्राभास निश्चित धारणा बनाना कठिन है। इस प्रकार यह स्पष्ट मिलता है।
'अनेकान्त' के स्वामित्व तथा अन्य व्योरे के विषय में
प्रकाशन का स्थान
वीर सेवा मन्दिर भवन, २१ दरियागज, दिल्ली प्रकाशन की अवधि
द्विमासिक मुद्रक का नाम
प्रेभचन्द राष्ट्रीयता
भारतीय पता
२१, दरियागज, दिल्ली प्रकाशक का नाम
प्रेमचन्द, मन्त्री वीर सेवा मन्दिर राष्ट्रीयता
भारतील पता
२१, दरियागज, दिल्ली सम्पादक का नाम
डा० प्रा. ने. उपाध्ये एम. ए. डी. लिट्, कोल्हापुर डा० प्रेमसागर, बड़ौत
यशपाल जैन, दिल्ली राष्ट्रीयता
भारतीय पता
मार्फत वीर सेवा मन्दिर २१, दरियागज दिल्ली स्वामिनी सस्था
वीर सेवा मन्दिर २१, दरियागज, दिल्ली मैं प्रेमचन्द घोषित करता हूँ कि उपरोक्त विवरण मेरी जानकारी और विश्वास के अनुसार सही है। १७-२-६४
ह० प्रेमचन्द (प्रेमचन्द)