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मोक्षमार्ग प्रकाशकका प्रारूप
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फो.
सो.
६२ १४-१५ कोउ मार तो भी न छोरै सो
यहाँ नीठि पावना बहुरि वियोग (नीठि शब्द की दुरूहता के फो. कारण पाठपरिवर्तन हुआ है, सो. एक अन्य ह. लि प्रतिमे 'सो यहाँ भी रोग पावना' ऐसा पाठ है; दूमरी एक प्रति मे हाशिये पर 'नीठि' का अर्थ
रोग निखा गया है)। फो ६३ २५ तथा ऐमा जानना कि जहा
कषाय बहुत हो और शक्ति हीन (हो वहाँ बहुत दुख सो होता है और ज्या-ज्यो कपाय कम होती जाए तथा शक्ति का बढ़ती जाए त्यो त्यो दुख कम होता है । परन्तु एकेन्द्रियो के सो कपाय बहन और शक्तिहीन) इमलिए एकेन्द्रिय जीव महा
दुखी है। ७३ १२ मा प्रति का कोप्टकगत पाठ
यहाँ नही है। महादुम्बी होते है। वनस्पति है सो पवनसे टूटती है, शीन
उष्णता से ७४ २ महादुखी हो है पवनत टूट है
बहुरि वनस्पति है सो शीत
उष्णकरि ७३ १३ निन्दक स्वयमेव अनिष्ट को
प्राप्त होता ही है, स्वय क्रोध
किस पर करे? ८४ १४ निन्दक स्वयमेव अनिष्ट पावै फो.
नाहीं है क्रोध कौनसो करें। (फोटो प्रिंट प्रति मे 'पावे ही हैं' ऐसा पूर्व में लिखा गया, तत्पश्चात् 'पावै नाही है
ऐसा उसके स्थान में सशोधन
किया गया है)। ८५ १२.१७-१८ 'सम्यग्ज्ञान-मिथ्याज्ञान' १८ ४-५,८-६ "मिथ्याज्ञान-सम्यग्ज्ञान' ९६ ६-७,६ इन्द्र, लोकपाल इत्यादि, तथा
अद्वैत ब्रह्म, राम, कृष्ण, महादेव, बुद्ध, खुदा, पीर, पैगम्बर इत्यादि, तथा हनुमान, भंगे,
......तथा गाय सर्प इत्यादि ११११ इन्द्र लोकपाल इत्यादि खुदा
पीर पैगम्बर इत्यादि बहुरि
भैरु......बहुरि सर्प इत्यादि ६६ १७ एक कैसे माना जाये ? इन
का मानना नो १७ एक कैसे मानिये है एक
मानना तो - वह ब्रह्म कोई भिन्न वस्तु तो सिद्ध नही हुई, कल्पना मात्र
ही ठहरी । तथा एक प्रकार ११२ ४-५ तौ ब्रह्म कोई जुदा वस्तु तौ
न ठहरया बहुरि एक प्रकार ६८ २६ परन्तु मूक्ष्म विचार करने पर
तो एक प्रश अपेक्षा से ब्रह्मके परन्तु सूक्ष्म विचार किए तो एक अश घटया एक अश
अपेक्षा ब्रह्म के RE १६ जहां न्याय नही होता ११६७ सो न्याय होय है तहाँ १०० १०-११ जो समवाय सम्बन्ध है तो ११७६ जो सयोग सम्बन्ध है तो
पीडा उत्पन्न करे तो उसे
बावला कहते है, ११८ पीडा उपजावै तौ ताको
वाउला कहिये है ('तौ ताकों बाउला कहिये है इस प्रगको लिखने के पश्चात् काट दिया गया है,
फो.