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मोक्षमार्गप्रकाशकका प्रारूप
बालचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री-परमानन्द शास्त्री श्रीप० टोडरमल जी के द्वारा विरचित मोक्षमार्ग- श्री ५० टोडरमलजी द्वारा लिखित इस प्रति में काटा प्रकाशक यह एक बहुत उपयोगी ग्रन्थ है। ऐसा कोई कूटी करके जहाँ-तहाँ पर्याप्त संशोधन किया गया है विरला ही स्वाध्यायप्रेमी होगा जिसने इस ग्रन्थ का स्वा- (इमके लिए सोनगढ सस्करण व दिल्ली सस्करण के प्रारभ ध्याय न किया हो। ग्रन्थ के नामानुसार ही इसमे मोक्ष- मे दिए गए उक्त प्रति के प्रारम्भिक व प्रन्तिम पत्रों को मार्ग को प्रकाशित करनेवाले तत्वो की चर्चा निश्चय और देखा जा सकता है। साथ ही वह अपूर्ण भी है. जहाँ व्यवहार के प्राथय से बहुत ऊहापोह के साथ की गई है। तहाँ उसमे अन्य लेखकों के द्वारा लिखित पत्र भी सम्मिइसकी रचना पण्डितजीने पचासो जैन-अजन ग्रन्थोके गभीर लित किये गये है। प्रति की जो परिस्थिति है उसे देखते मध्ययन के पश्चात् मौलिक रूपमे की है। दुर्भाग्य यह रहा हुए यदि यह कहा जाय कि यह उस मोक्षमार्गप्रकाशक है कि वे उसे पूरा नहीं कर सके और बीच में ही काल- का अन्तिम रूप नही है, किन्तु प्राग्रूप या कच्ची कापी कवलित हो गये। इससे उन्होने यत्र तत्र जिन अनेक जैसा है, तो यह अनुचित न होगा। बहुधा ऐसा हमा भी महत्त्वपूर्ण विषयो के आगे विवेचन करने की जो सूचना करता है कि यदि कोई महत्त्वपूर्ण निबन्ध आदि लिखना है की है तदनुसार उनका विवेचन हो नहीं सका।
तो पहिले उसकी कच्ची कापी (Rough) करके उसे
तैयार कर लिया जाता है और तत्पश्चात् उसे अन्तिम इस ग्रन्थ के कितने ही सस्करण प्रकाशित हो चुके है।
रूप (Fair) मे लिख लिया जाता है। तदनुसार ही यह वर्तमान में (वी०नि०म० २४६३) इसका एक नवीन
पडित जी के द्वारा मोक्षमार्गप्रकाशक का पूर्व रूप तैयार सस्करण शुद्ध हिन्दी में अनूदित होकर जैन स्वाध्याय मदिर
किया गया है। इसपर से वे उसे अन्तिम रूप मे लिखना ट्रस्ट सोनगढ की ओर से प्रकाशित हुआ है। उसकी
चाहते थे। पर दुर्भाग्यवश या तो आकस्मिक निधन के अप्रामाणिकता और प्रामाणिकता के सम्बन्ध मे इधर समा
कारण वे उसे लिख ही नही सके या फिर यदि लिखा चारपत्रो में परस्पर विरोधी कुछ लेख प्रगट हुए है । इसके
गया है तो कदाचित् जयपुर में उसकी बह प्रति उपलब्ध पूर्व सस्ती ग्रन्थमाला कार्यालय दिल्ली से भी उसके चार सस्करण प्रगट हो चुके है। इसका सम्पादन' हम दोनोमे से
१ मूल प्रति के प्रारम्भ के १५ पत्र (फोटो प्रिंट पृ. एक (परमानन्द शास्त्री के द्वारा हुआ है। उसका आधार
१०६) दूसरे लेखक के द्वारा लिखे गये है। इनमें प्रायः प. टोडरमलजी के द्वारा स्वय लिखी गई प्रति को
प्रत्येक पत्र में अक्षर-मात्रामों की अशुद्धिया है, शब्द भी बनाया गया है। इसीलिए सम्पादनवश समाचारपत्रों के
यत्र तत्र कुछ स्वलित हुए है। साथ ही वैसे सशोधन अतिरिक्त कुछ व्यक्तिगत पत्र भी सम्पादक को प्राप्त हुए।
का प्राप्त हुए यहा नही है जैसे कि आगे के पत्रों में पण्डितजी के द्वारा है, जिनमे उसके स्पष्टीकरण की मांग की गई है।
किये गये है। पत्र ५५ पर केवल । पक्तिया है, प्रागे उधर सोनगढ़ से जो प्रस्तुत सस्करण प्रकट हुमा है वहाँ कोष्ठक मे 'इससे मागे पत्र संख्या ५६ पर देखें उसका आधार भी पूर्वोक्त ५० टोडरमलजो द्वारा लिखित यह किसी दूसरे के द्वारा पतले अक्षगे में लिखा गया है। प्रति बतलाई गई है। (प्रकाशकीय पृ० ३)
पृ० १८७ को सर्वथा रद्द किया गया है। पृ. ३३६-३७
और ४०८-६ भी किसी अन्य लेखक के द्वारा लिखे १नाम केवल प्रथम संस्करण मे ही दिया गया है। यह