Book Title: Anekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 303
________________ २७% अनेकान्त तथा लवण का उल्लेख है। स्निग्ध पदार्थ, गौरस तया करता है। मनुष्यों को प्रकृति भिन्न भिन्न प्रकार की होती अन्य पेय सामग्री में घृत, प्राज्य, तेल, दधि, दुग्ध, नवनीत. है। ऋतु के अनुसार प्रकृति में परिवर्तन होता रहता है। तक्र, कलि, या अवन्ति, सोम, नारिकेलफ लाभ पानक तथा इसलिए भोजनपान आदि की व्यवस्था ऋतुओं के अनुसार शर्कराय पेय का उल्लेख है। घृत, दुग्ध, दधि तथा तक करना चाहिए। भोजन का समय, सहभोजन, भोजन के के गुणों को सोमदेव ने विस्तार से बताया है। मधुर समय वर्जनीय व्यक्ति, भोज्य और अभोज्य पदार्थ, विषपदार्थों में गर्करा, शिता, गुड़ तथा मधु का उल्लेख है। युक्त भोजन, भोजन करने की विधि, नीहार या मलमूत्र माग-सब्जी और फलों की तो एक लम्बी सूची पायी है- विसर्जन, अभ्यंग उद्वर्तन व्यायाम तथा स्नान इत्यादि के पटोल, कोहल, कारवेल, वृन्ताक, बाल, कदल, जीवन्ती, विपय मे यशस्तिलक में पर्याप्त सामग्री पायी है। उम मलय, विस, वास्तूल, तण्डुलाय, चिल्ला, चिभाटका, सबका इस परिच्छेद मे विवेचन किया गया है। मूलक, पाक, धात्रीफल, एर्वारु, अलाब, कारु, मालूर, चक्रक, अग्निदमन, रिगणीफल, अगस्ति, आम्र, आम्रातक, रोगो में अजीर्ण, अजीर्ण के दो भेद विदाहि और पिचुमन्द, सोभाजन, वृहतीवार्ताक, एरण्ड, पलाण्डु, बल्लक, दुर्जर, दृग्मान्य वमन, ज्वर, भगन्दर, गुल्म तथा सितश्वित रालक, करेकून्द, कोकमाची, नागरग, ताल, मन्दर, नाग- के उल्लेख हैं। इनके कारणों तथा परिचर्या के विषय में वल्ली, बाण, आसन, पूग, अक्षोल, खजूर, लवली, जम्बीर, भी प्रकाश डाला गया है। अश्वत्थ, कपित्थ नमेरु, पारिजात, पनस, ककुभ, बट, कुरबक, औषधियो मे मागधी, अमृता, सोम, विजया, जम्बक, जम्ब, दर्दरीक, पुण्डेक्ष, मद्वीका, नारिकेल, उदम्बर तथा मुदर्शना, मरुद्भव, अर्जुन, नकुल, सहदेव, अभीरु, लक्ष्मी, वती, नपस्विनी, चन्द्रलेखा, कलि, अर्क, अरिभेद, शिवप्रिय, __ तैयार की गई सामग्री मे भक्त, मूग गाकुली, समिध गायत्री, ग्रन्थिपर्ण तथा पारदरस को जानकारी पायी है। या समिता, यवाग्, मोदक, परमान्न, खाण्डव, रसान मोमदेव ने प्रायुर्वेद के अनेक पारिभाषिक शब्दों का भी अमिक्षा, पक्वान्न, प्रवदश, उपदंश, सपिपिस्नात, अगार- प्रयोग किया है । इम मब पर इस परिच्छेद में प्रकाग डाला पाचिन, दनापरिप्लुत, पयषा-विशाक तथा पर्पट के उल्लेग्न गया है। परिच्छेद सात मे या यशस्तिलक में उल्लिखित वस्त्रो मामाहार तथा सासाहार निषेध का भी पर्याप्त वर्णन तथा वेशभूषा का विवेचन है। सोमदेव ने बिना सिले है। जैन मामाहार के तीव्र विरोधी थे, किन्तु कील-कापा वस्त्रो मे नेत्र, चीन, चित्रपटी, पटोले, रल्लिका, दुकूल, लिक प्रादि सम्प्रदायो में मासाहार धार्मिकम्प से अनुमत अशक तथा कौशेय का उल्लेख किया है। नेत्र के विषय था। वध्य पशु-पक्षी तथा जलजन्तुग्रो मे मेप, महिप, मय, में सर्वप्रथम डॉ० वामदेवशरण अग्रवाल ने विस्तार में मातग, मितदु. कुभीर, मकर, मालूर, कुलीर, कमठ, पाठीन, जानकारी दी थी। नेत्र का प्राचीनतम उल्लेख कालिदास भेमण्ड, कोच, कोक, कुकट, कुरर, कलहम, चमर, चमूर के रघवग का है । बाण ने भी नेत्र का उल्लेख किया है। हरिण, हरि, बक, वराह, वानर तथा गोबर के उल्लेख है। नाक में इसके चौट प्रकार बताये है। चौदहवी मामाहार का ब्राह्मण परिवारों में भी प्रचलन था। यज दाती तक बगाल में नेत्र का प्रचलन था। नेत्र की पाचूडी पौर श्राद्ध के नाम पर मासाहार की धामिक म्वाकृति गोटी और बिछायी जाती थी। जायसी ने पद्मावत में कर मान ली गई थी। इस परिच्छेद में इस मपूर्ण मामग्री का वार नेत्र का उल्लेख किया है। गोरखनाथ के गीतों तथा विवेचन किया गया है। भोजपुरी लोकगीतो मे नेत्र का उल्लेख मिलता है। चीन परिच्छेद छह मे स्वास्थ्य, रोग और उनकी परिचर्या देश से आने वाले वस्त्रों को चीन कहा जाता था। भारत विषयक सामग्री का विवेचन है। खानपान और स्वास्थ्य में चीनी वस्त्र प्राने के प्राचीनतम प्रमाण ईसा पूर्व पहली का अनन्य संबंध है। जठराग्नि पर भोजन पान निर्भर दाताब्दी के मिलते है। डॉ० मोतीचन्द्र ने इस विषय पर

Loading...

Page Navigation
1 ... 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316