Book Title: Anekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 302
________________ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन २७७ स्वजिन्, निपाजीव, रजक, दिवाकीति, पास्तरक, सवाहक, लन था। सोमदेव ने चिरपरिचित पारिवारिक सम्बन्ध धीवर, चर्मकार, नट या शैलूष, चाण्डाल, शबर, किरात, पति, पत्नि, पुत्र, आदि का सुन्दर वर्णन किया है । बालवनेचर और मातग का उल्लेख किया है। इस परिच्छेद क्रीडा का जमा हृदयग्राही वर्णन यशस्तिलक में है, वैसा में इन सब पर प्रकाश डाला गया है। अन्यत्र कम मिलता है। स्त्री के भगिनी, जननी, दूतिका, परिच्छेद दो में जनाभिमत वर्णव्यवस्था और मोमदेव महवरी, महानसकी, धातृ भार्या श्रादि रूपा पर प्रकाश की मान्यताप्रो पर विचार किया गया है । सिद्धान्त प डाला गया है। से जैनधर्म में वर्णव्यवस्था की श्रीतम्मातं मान्यताये स्वीकृत यगस्तिलक में विवाह के दो प्रकारों का उल्लेख है। नहीं है । कर्मग्रन्थों में वर्ण, जाति ओर गोत्र की व्याख्या प्राचीन गजे-महाराजे तथा बहुत बड़े लोगो मे स्वयवर प्रचलित व्याख्यानो से सर्वथा भिन्न है। इसी प्रकार जैन की प्रथा थी । स्वयवर के आयाजन की एक विशेष विधि ग्रन्थो मे चतुर्वर्ण की च्याम्या भी कर्मणा की गयी है। थी। माता पिता द्वारा जा विवाह प्रायोजित हात थे, सिद्धान्त रूप में मान्यताओं का यह रूप होते हुए भी व्यव- उनमें भी अनेक बाता का ध्यान रखा जाता था। सामदेव हार में जन गमाज में भी श्रीन-स्मात मान्यताये प्रचलित ने बारह वर्ष की कन्या नथा मोलह वर्ष के युवक को थीं। इसलिए सोमदेव ने चिलन दिया कि गृहस्थ के लो- विवाह योग बनाया है। बाल विवाह की परम्परा स्मृतिकिक और पारलौकिक दो धम हे । लोक धर्म लौकिक मा- काल से चली प्रायी थी। स्मृति ग्रन्थों मे अरजस्वला न्यताओं के अनमार तथा पारलौकिक धर्म अागमो प्रामार कन्या के ग्रहण का उल्लंग्व है। अलबरनी ने भी लिखा है मानना चाहिए। प्राचीन कर्मग्रन्थों में लेकर मोगदन नक के कि गाग्नवर्ष म बाल विवाह की प्रथा थी। इस परिच्छद जैन माहित्य के परिप्रेक्ष्य में इस विषय पर विचार निया म:म सम्पूर्ण मागग्री का विबनन किया गया है। गया है। परिच्छद पाच में यगरिनलक में पायी खान-पान परिच्छेद नीन में पाश्रम व्यवस्था और सन्यम्न व्यक्ति विषयक मामग्री का विवचन है। सोमदेव की इस सामग्री यो का विवचन है । पाश्रम व्यवस्था की प्राचीन मान्यनाए की विविध उपयोगिता है। एक तो इससे खाद्य प्रा. पव प्रचलित थी। ब्रह्मचर्य प्राथम की समाप्ति पर मोमदेव वस्तयो की लम्बी सूची प्राप्त होती है, दूसरे दशमा शतो ने गोदान का उल्लेख किया है। बाल्यावस्था में मन्यम्न में भारतीय परिवाग-विशेषकर दक्षिण भारत के पार होने का निपंध किया जाता रहा है। पर इसके भी पर्याप्न बार्ग की खान-पान व्यवस्था का पता चलता है। तासर अपवाद रहे है। यशस्तिलक के प्रमुख पात्र अभय चि ऋतूमों के अनसार सलिन और स्वास्थकर भाजन पर और अभयमति भी छोटी अवस्था में प्रजित हो गये थे। व्यवस्थित जानकारी प्राप्त होती है। पाकविद्या 1444 सन्यम्न व्यक्तियो के लिए प्राजीवक, कर्मन्दी, कापालिक, में भी मोमदेव ने पर्याप्त जानकारी दी है। शुभार कौल, कुमाग्श्रमण,चिणिखडि, ब्रह्मचारी, जटिल, देशनि, मसर्ग भेद में मठ प्रकार के व्यजन बनाये जा स॥ ५ । देशक, नास्तिक, परिव्राजक, पागशर, ब्रह्मचारी, भविल, मपशास्त्र विशेषज्ञ पांगंगव का भी उल्लेख ह। पना महानती, महामाहसिक, मुनि, मुमुक्षु, यति, यागज, यागी, पकायी गई खाद्य मामग्री में गाधूम, यय, दीदिषि, 4110 वैखानम, शमितव्रत, श्रमण, माधक, माधु, पोर रिपब्दो मालि. कलम. यवनाल, चिपिट, मूल, मुद्ग, मा. 11. का प्रयोग हुआ है। इनमें से अधिकाश नाम अपने-अपने माल तथा द्विदल का उल्लख है। भोजन के साथ जल सम्प्रदाय विशेष को व्यन करते है । इनके विषय में मक्षेप किम अनपात पाना चाहिए, जल को अमृत पार ... में जानकारी दी गयी है। क्या कहा जाता ह, ऋतुमा के अनुसार वापी, कूप, .... परिच्छेद चार में पारिवारिक जीवन और विवाह की कहाँ का जल पीना उपयुक्त है, जल को ससिद्ध . प्रचलित मान्यताओं पर प्रकाश डाला गया है। सोमदेव- जाता है, इसकी जानकारी विस्तार से दी गयी। कालीन भारत में संयुक्त परिवार प्रणाली का प्रन- ममालो में दरद, क्षपारम, मरिच, पिप्पली .....

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