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अनेकान्त
कर्णोभषणों में सोमोव ने प्रपतंस, कर्णपूर, कणिका, पहनने के आभूषण थे। कर्णात्पल तथा कुंडल का उल्लेख किया है। अवतंस प्रायः इस परिच्छेद में इन सब प्राभषणों के विषय में पल्लव या पुष्पों के बनते थे। सोमदेव ने पल्लव, चम्पक, विस्तार से जानकारी दी गई है। कचनार, उत्पल तथा करव के बने अवतसो के उल्लेख
परिच्छेद नव मे केश विन्यास, प्रसाधन सामग्री तथा किये है। एक स्थान पर रत्नावतसो का भी उल्लेख है।
पुष्प प्रसाधन की मुकुमार कला का विवेचन है। शिर कर्णपुर पुष्प के प्राकार का बनता था। देशी भाषा मे
धोने के बाद स्त्रियां सुगधित धूप के धुएं से केशो को अभी इसे कनफूल कहा जाता है। कणिका तालपत्र के
धुपायित करती थी। इससे केश भभरे हो जाते थे । भभरे भाकार का कर्णाभूषण था। आजकल इसे तिकोना कहते
केशों को अपनी रुचि के अनुसार अलकजाल, कुन्तलकलाप, हैं। उत्पल के भाकार का बना कर्ण का आभुषण कर्णात्पल
केशपाश, चिकुरभग, धम्मिल्ल विन्यास, मौली, सीमन्तकहलातामा । कुण्डल, कुड्मल तथा गोल बाली के आकार
मन्नति, वेणीदण्ड, जटाजूट या कबरी की तरह सवार के बनते हैं। इनमें कानो को लपेटने के लिए एक पतली
लिया जाता था। कैश संवारने के ये विभिन्न प्रकार थे। जंजीरी रहती थी। बुन्देलखण्ड में इस प्रकार के
कला, शिल्प और मृण्मूर्तियो मे इनका अकन मिलता है। कृण्डनों का देहांतो में अब भी रिवाज है।
हम परिच्छेद मे इन सबका परिचय दिया गया है। मले में पहनने के आभूषणों मे एकावली, कठिक।
प्रमाधन सामग्री मे अजन, अललक, कज्जल, अगुरु, मौलिकदाम, हार तथा हाग्यष्टि का उल्लेख । एकावली
ककोल, कुकुम, कर्पूर, चन्द्रकवल, तमालदलधूलि, ताम्बुल, मोहियों की इकहरी माला को कहते थे। मोमदेव ने इसे
पटवाम, मन. सिल तथा सिन्दूर का उल्लेख है। पुप्प समरत पृथ्वीमण्डल को वश में करने के लिए आदेशमाला
प्रमाधन में पुष्पों के बने विभिन्न प्रकार के अनंकागे के के समान कहा है। गुप्त युग में ही विशिष्ट प्राभपणो के
नाम आये है। जैसे-अवतम कुवलय, कमल केयूर, विषय मे अनेक किंवदंतिया प्रचलित हो गई थी। एकावली
कदलीप्रवाल मेखला, कर्णोत्पल, कर्णपूर या कर्णफूल, के विषय में बाण ने एक रोचक किवदन्ती का उल्लेख
मृणालवलय, पुन्नागमाला, बन्धूक नूपूर, गिरीष जघापिया है। कठिका कठी को कहते थे। हार अनेक प्रकार
लकार, शिरीपकुमृमदाम, विकिलाहारर्याप्ट तथा कुरवकके बनने थे। सोमदेव ने पाठ बार हार का उल्लेख किया मकन्नरक । इन सबके विषय में प्रस्तुत परिच्छेद मे जानहै। हारयष्टि संभवतया मागुल्फ लम्बा हार कहलाता था। कारी दी गयी है। मौक्तिक दाम मोतियो की माला को कहने थे ।
परिच्छेद दश मे शिक्षा और साहित्य विषयक सामयी भूजा के आभूषणो में प्रगद और केयुर का उल्लेख का विवेचन है। बाल्यावस्था शिक्षा का उपयुक्त समय है। केयूर भजा के शीर्ष भाग में पहना जाता था। अगद माना जाता था। गुग्कुल प्रणाली शिक्षा का प्रादर्श थी। बहत मुम्त होने के कारण ही मभवतया अगद कहनाता। शिक्षा ममाप्ति के बाद गोदान किया जाता था। शिक्षा था। स्त्री और पुरुष दोमो अगद पहनते थे। कलाई के के अनेक विषयों का मोमदेव ने उल्लेख किया है । अमृतप्राभपणो में कंकण और वमय का उल्लेख है। ककण प्राय मति महागनी की द्वारपालिका को समस्त देशो की सोने प्रादि के बनो थे और बलय सीग, हाथी दात पा भाषा और वेश की जानकागे कहा गया है। तर्कशास्त्र, काच के। हाथ की अगुली में पहना जाने वाला गान पुराण, काव्य, व्याकरण, गणित, शब्दशास्त्र, धर्माख्यान मल्ला उमिका कहलाता था। प्रगुलियक भी अगुली में प्रमाणशास्त्र, राजनीति, गज और अश्व शिक्षा रथ, वाहन पहना जाने वाला प्राभूपण था। कटि के प्राभूषणो मे और शस्त्र विद्या, रत्नपरीक्षा, सगीत, नाटक, चित्रकला, कांचो, मेखला रसना, सारमना तथा घर्घरमालिका का आयुर्वेद, युद्ध विद्या तथा कामशास्त्र शिक्षा के प्रमुग्व विषय उल्लेख है ये सब करधनी के ही भिन्न-भिन्न प्रकार थे। थे। इन्द्र, जैनेन्द्र, चन्द्र, अपिशल, पाणिनि तथा पतंजलि के मजीर, हिंजीरक, नूपुर, लुलाकोटि और मसक पेगें मे व्याकरणों का अध्ययन अध्यापन होता था। (क्रमशः)