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अनेकान्त
विशाल दर्पण की तरह प्रतिबिम्बित करता है जिस तरह लगभग आज तक यशोधर की कथा कहते पाये । उद्योतन बाणभट्ट ने हर्षचरित और कादम्बरी में गुप्त युग का चित्र मूरि (७७७ ई.) ने प्रभजन के यशोधरचरित्र का उल्लेख उतारने का प्रयत्न किया, उसी तरह सोमदेव ने यशम्तिलक किया है। हरिभद्र की समराइच्चकहा में यशोधर की कथा में राष्ट्रकूट युग का।
आयी है। बाद के साहित्यकारोंने प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रश, सोमदेव देवसंघ के साधु थे । परिकेसरी के दान पत्र पूरानी हिन्दी, गुजराती, राजस्थानी, तमिल और कन्नड़ में उन्हें गौण सघ का कहा गया है। वास्तव मे ये दोनों भाषाओ मे यशोधरचरित्र पर अनेक ग्रन्थों की रचना एक ही सघ के नाम थे। देवसघ अपने युग का एक की। प्रो०प० ल. वैद्य ने जसहरचरिउ की प्रस्तावना में विशिष्ट्र जैनसाघु संघ था। सोमदेव के गुरु, नेमिदेव ने उन्तीम ग्रन्थो की जानकारी दी थी। मेरे सर्वेक्षण से यह सैकडो महावादियो को वाग्युद्ध में पगजित किया था। सख्या चौवन तक पहुंची है। अनेक गास्त्र भण्डारो की मोमदेव को यह सब विरासत में मिला। यही कारण है मूचियों अभी भी नहीं बन पायी। इसलिए मभव है अभी कि उनके लिए भी वादीभपचानन, नाकिक चक्रवर्ती ग्रादि और भी कई ग्रन्थ यशोधर कथा पर उपलब्ध हों। विशेषण प्रयुक्त किये गये है।
द्वितीय अध्याय में यशस्तिलककालीन सामाजिक इस सम्पूर्ण सामग्री को प्रमाणक माक्ष्यों के माथ पहले जीवन का विवेचन है। इसमें बारह परिच्छेद है। परिच्छेद परिच्छेद में दिया गया है।
एक में समाज गठन भौर यशस्तिलक में उल्लिखित सामादूसरे परिच्छेद में यशस्तिलक की मक्षिप्त कथा दी जिक व्यक्तियों के विषय में जानकारी दी गई है। सांगदेव गई है तथा उसकी मास्कृतिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला कालान ममाज अनक वा म विभवा था । वर्ण गया है। महाराज यशोधर के पाठ जन्मो की कहानी का
की प्राचीन श्रीन-म्मात मान्यताय प्रचलित थी। ममाज मूल यशस्तिलक के प्रासगिक विस्तृत वर्णनों में कही खो न और साहित्य दाना पर उन मान्यनामों का प्रभाव था। जाये, इसलिए सक्षिप्त कथा का जान नना यावश्यक है। ब्राह्मण के लिए यशस्तिलक में ब्राह्मण, द्विज, विप्र. भदेव,
थोत्रिय, वाडव, उपाध्याय, मौलनिक, देवभोगी, पुरोहित ___ कथा के माध्यम से सिद्धान्त और नीति की शिक्षा
और त्रिवेदी शब्द आये है। ये नाम प्राय उनके कार्यों के की परम्परा प्राचीन है। यशस्तिनक की कथा का उद्देश्य
६५ आधार पर थे। हिमा के दुष्प्रभाव को दिखाकर जनमानस मे अहिसा के
क्षत्रिय के लिए क्षत्र और क्षत्रिय शब्द प्राय है। उच्च आदर्श की प्रतिष्ठा करना था। यशोधर को पाटे के
पौरुष सापेक्ष्य पोर गज्य सचालन प्रादि कार्य क्षत्रियोचित मुर्गे की बलि देने के कारण छह जन्मो तक पशुयोनि में
माने जाते थे। भटकना पडा तो पशु बलि या अन्य प्रकार की हिसा का तो और भी दुप्परिणाम हो सकता है। सोमदेव ने बड़ी
वैश्य के लिए वेश्य, वणिक, प्ठि और सार्थवाह कुशलता के साथ यह भी दिखाया है कि मकल्प पूर्वक शब्द आये है। ये देशी व्यापार के अतिरिक्त टाडा बाधहिंसा करने का त्याग गृहस्थ को विशेष रूप में करना कर विदेशी व्यापार के लिए भी जाने थे। थुप्ठ व्यापारी चाहिए । कथावस्तु की यही सास्कृतिक पृष्ठभूमि है।
को गज्य की ओर मे गजथेप्ठी पद दिया जाता था। तीसरे परिच्छेद मे यशोधरचरित्र की लोकप्रियता का
प्रियता का शुद्र के लिए यगस्तिलक में शूद्र, अन्त्यज पोर पामर सर्वेक्षण है। यशोधर की कथा मध्ययुग से लेकर बहत शब्द आये है। प्राचीन मान्यतायों की तरह मोमदेव के बाद तक के साहित्यकारो के लिए एक प्रिय और प्रेरक समय भी अन्त्यजो का स्पर्श बजनीय माना जाता था और विषय रहा है। कालिदास ने प्रवन्ति के उदयन-कया वे राज्य गचालन आदि के अयोग्य समझे जाते थे। कोविद ग्रामवृद्धो की बात कही थो, यशोधर कथा के अन्य मामाजिक व्यक्तियों में सोमदेव ने हलायुधजीवि. विशेषज्ञ मनीषी पाठवी शती के भी बहुत पहले से लेकर गोप, वजपाल, गोपाल, गोध, नक्षक, मालाकार कौलिक