Book Title: Anekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 292
________________ मोक्षमार्गप्रकाशक का प्रारूप दिः दि. फो. दि. २१० १८ बहुरि ऋषीश्वर भारतविर्षे उदयके निमित्तकरि कबहूँ ५ बहुरि भारतविर्षे ज्ञानादिक धन प्रगट हो हैं २१२ ३-४ सो उनको पूछिए है गणधरने कबहूँ थोरै प्रगट हो हैं प्राचारांगादिक बनाए हैं सो दि. ४५६ १६-१६ तहाँ रागादिक का तीव्र उदय तुम्हारे प्रबार पाइए है होते ती विषयकषायादिकके १७३८ सो उनको पूछिए है गणधरने कार्यनिविष ही प्रवृत्ति बने आचारांगादिक तुम्हारे अवार पर पाप पुरुषार्थ करि तिन पाइए है उपदेशादिकविष उपयोगका ४३६ १६-१८ वस्त्रादिकका कथनविष मही लगावै, तो धर्मकार्यनिविष नका नाम सूक्ष्म, मोटाका प्रवृत्ति होय । भर निमित्त बने, नाम बादर, ऐसा अर्थ है। वा आप पुरुषार्थ न कर (करणानुयोग के कथनविर्ष फो. ४०३ ३-६ तहाँ रागादिक का तीव्र उदय पुद्गल स्कन्धके निमित्ततं रुक होते तो विषय कपायादिक के नाही ताका नाम सूक्ष्म है पर कार्यनिविष भी प्रवृत्ति होइ ।। रुक जाय ताका नाम बादर है) बहुरि रागादिक मंद उदय २ दि. म. का कोष्ठकगत पाठ होते बाह्य उपदेशादिक का यहा नहीं है। निमित्त बन पर आप पुरुषार्थ २० प्रमाणभेदनिविपं स्पष्ट व्यवहार करि (यहाँ पाठ अव्यवस्थित प्रतिभासका नाम प्रत्यक्ष है अधिक है) ३८० ३-४ प्रमाणभेदनिविष स्पष्ट प्रतिभास का नाम प्रत्यक्ष है कुछ अनिष्ट भी प्रसंग ४५६ -१० उत्कर्षण अपकर्पण सक्रमणादि प्रस्तुत ग्रन्थ का महत्त्व उभय पक्षों द्वारा ही स्वीकार होते तिनकी शक्तिहीन अधिक किया जाता है । पर जहां तक हम समझते है उसके अन्तहोय वर्मउदय निमित्त र्गत सब ही विषयों से वे शायद ही सहमत हो। उदाहरकरि तिनका उदयभी मदतीय णार्थ यहां हम ऐसे दो चार स्थलों को उदधत करते हो है । तिनके निमित्तते है जिनको प्रतिकूलता का अनुभव प्रथासम्भव दोनों ही नवीन बघभी मद तीव्र हो है। पक्ष कर सकते हैतात ससारी जीवनिक कब १ अनेक उपाय करने पर भी कर्म के निमित्त बिना जागतिक हो सामग्री नहीं मिलती। (सोन संस्करण पृ. ४८) कबहे थोरे प्रगट हो । २ अथवा बाह्य सामग्री से सुख-दुख मानने सो ही ०२ १५-१७ उत्कर्षण अपकर्षण सक्रमणादि भ्रम है। सुख-दुख तो साता-असाता का उदय होने होतं तिनकी शक्ति हीन आधक पर मोह के निमित्त से होते है, ऐसा प्रत्यक्ष देखने में माता होइ है तातै तिनका उदय भी है। (मो० पृ० ५६) मद तीव्र हो है तिनके निमित्त- ३ इसलिए सामग्री के अधीन सुख-दुख नहीं है। ते नवीन बंध भी मद तीव्र हो साता-असाता का उदय होने पर मोहपरिणमन के निमित है तात संसारी जीवनिके कर्म से ही सुख-दुख मानते हैं। (सो. पृ०६०) फी

Loading...

Page Navigation
1 ... 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316