Book Title: Anekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 290
________________ मोक्षमार्गप्रकाशक का प्रारूप २६५ सो. २२८ ४ . १८५ १७ तथापि अन्तरंग लोभी होता' फो. है इसलिए सर्वथा महतता सो. नही हुई फो. ७ तथापि अन्तरंग लोभी होइ सो दातारको ऊचा मान पर दि. दातार लोभीको नीचा मान ताते वाके सर्वथा महतता न भई २२ इसलिए गुरुओं की अपेक्षा १२ तात गुणनिकी अपेक्षा ४ जीवित मरण लेते है ५ जीवित माटी ले है दि. १० इसलिए उसका कार्य सिद्ध नहीं हुआ १४ बहुरि तिनिका कार्य सिद्धि भया १२ ऐमी दशा होती है। जैनधर्म मे प्रतिज्ञा न लेने का दण्ड तो है नही ३०२ १३ ऐसी इच्छा होय सो जैनधर्म विप प्रतिज्ञा लेनेका दण्ड तो है नही २६५८ वैसे अनेक प्रकार से उस यथार्थ श्रद्धानका अभाव होता HMMM ३७५ - ६ प्रबहू त्रिकरण करि शुद्ध जीव २९५ १२ इसी प्रकार अन्यत्र जानना ३७७७ ऐसे ही अन्य जानना दिल्ली संस्करण के पाठभेद ११ जिनके दर्शनादिकतै (स्वपर भेदविज्ञान होय है कषाय मंद होय शान्तभाव हो है वा) एक धर्मोपदेश बिना ७ ३-५ यहाँ दिल्ली संस्करणका कोप्ठकगत पाठ नहीं है। २३ १.-१७ समाधान कर (जो प्रापर्क उत्तर देने की सामर्थ्य न होय तो या कहै याका मोकों ज्ञान नाही किसी विशेष ज्ञानीसे पूछकर तिहारे ताई उत्तर दृगा अथवा कोई ममय पाय विशेष ज्ञानी तुमसौ मिले तो पूछकर अपना सन्देह दूर करना और मोकू हू बताय देना । जाने ऐसा न होय तो अभिमानके वशते अपनी पडिताई जनावनेकौ प्रकरणविरुद्ध अर्थ उपदेश, तात श्रोतानका विरुद्ध श्रद्धान करनेत बुरा होय जैनधर्मकी निदा होय ।) जातं जो ऐसा न होय ७ यहा दि. मस्करणका कोप्ठक गत पाठ नही उपलब्ध होत।। ३७ १७ आप ही मिल है (अर सूर्यास्त का निमित्त पाय आप ही विछुरै है। ऐसा ही निमित्त नैमित्तिक बनि रहा है। ३१ १० दि. सं. का कोप्ठकगत पाठ यहाँ नही है। ३३७ -१० तैसे अनेक प्रकार करि तिम पर्यायार्थी(?)श्रद्धानका अभाव २६० १६ और करणानुयोगका अभ्यास करने पर १७ अर चरणानुयोगका अभ्यास ३७० किए दि २६३ ११ वह सम्यक्त्व स्व-परका श्रद्धान होने पर होता है १ सो सम्यक्त्व स्वपरादिक का श्रद्धान भए होय २९४३ अाज भी त्रिरत्नसे शुद्ध जीव ३७४ फो

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