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एलिचपुर के राजा श्रीपाल उर्फ ईल
नमचन्द धन्नुसा जैन
(१) अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ के बस्ती मन्दिर मे जो १.६ पर लिखते है-"करकड़ चरित जिनके अनुराग सफेद पाषाण की पद्मावती माता की दिगम्बरी प्रतिमा है, बश बनाया गया था, ग्रन्थकार ने उनका नाम कही भी उनके सामने वहा की सुवासिनी स्त्रिया यह मगल पारती उल्लिखित नही किया। कवि ने उन्हे धर्मनिष्ठ और नित्य गाती है।
व्यवहार कुशल बतलाया है। वे विजयपाल नरेश के 'जाउ चला ग सखे, गाउ चला ग सखे, जाउ लवकरी ।। स्नेह पात्र थे। उन्होने भूपाल नरेश के मन को मोहित घेउनी हाती दीपक ज्योती, रत्नखचित हिर माणिक माती कर लिया था। वे कर्णदेव के चित्त का मनोरजन किया देवाची पद्मावती, काय सागू साजणी ग जाउ लवकरी ॥१॥ करते थे ।... भपाल राजाची कन्या सगोनी, श्रीपाल राजाची एका कपाना उक्त राजा गण कब और कहा हा इसी पर यहा गधोद घे ग सखे, मत्रप्रभावना । ग जाउ लवकरी ॥शा विचार किया जाता है-एक लेख में लिखा कि विजय(जसी) सूर्या सुन्दर सती, (तसी) श्रीपाल राजामती।।
पाल नरेश विश्वामित्र गोत्र के क्षत्रिय वश मे उत्पन्न हुए प्रसन्न हो ग सखे, मत्रप्रभावना। ग जाउ लवकरी ॥३॥ थे। उनके पुत्र भुवनपाल थे, उन्होंने कलचूरी, गुर्जर और
इसमे दूसरा तथा तीसरा भाग एतिहासिक महत्व दक्षिण को विजित किया था। यह लेख दमोह जिले के रखता है । जब श्रीपाल राजा को कुप्ट राग हुप्रा और
हटा तहसील में मिला था। जो आजकल नागपुर के विश्राम के लिये उसने श्रीपुर का प्राश्रय लिया था। तब अजायब घर में सुरक्षित है । उसके साथ भूपाल राजा की कन्या थी। जिमने राजा को
मग लेख-बादा जिले के अतर्गत चदेले की पुरानी मत्र साधना में साथ देकर तथा कूपजल याने मूति ससग
राजधानी कालिजर में मिला है। उसमे विजयपाल के से हा गधोदक उससे स्नान कराकर व्याधि से राजा को
पुत्र भूमिपाल का दक्षिण दिशा और राजा कर्ण से जीतने मुक्त किया था । वह कैसी थी? तो जैमी सूर्य को सती,
का उल्लेख है। वैसी वह श्रीपाल गजा की रानी थी। उसका नाम राजामती था। मत्र प्रभाव से माता पद्मावती ने राजा को
__तीसरा लेख-जबलपुर जिले के अतर्गत 'तीवर' में साक्षात्कार देकर मूर्ति की प्राप्ति कराई थी। ।
मिला है, इसमें भूमिपाल के प्रसन्न हाने का स्पष्ट उल्लेख श्रीपाल गजाकी रानीके उल्लेख तो अनेक साहित्य में है। है। उनके उतारे यहा देने की आवश्यकता नहीं है। तथा जब स० १०६७ के लगभग कालिजर में विजयपाल नाम दूसरा प्रबल विरोधी प्रमाण हमारे सामने नहीं पाता तब का राजा हुआ। यह प्रतापी कलचरि नरेश कर्णदेव के तक इसको ग्राह्य मानने में कोई आपत्ति नहीं आएगी। समकालीन था। आदि।।
तथापि इमके प्रामाण्य के लिए मुनि कनकामर रचित मुनि कनकामर इन सबके समकालीन होने से अगर 'करकडु चरित्र' की प्रशस्ति में उल्लेग्वित 'राजा भूपाल' ये भूपाल और भूमिपाल एक ही व्यक्ति हो तो भूपाल के काल और स्थल पर यदि उचित प्रकाश पडे तो अच्छा नरेश का संबध दक्षिण मे पाता है। अतः उसकी लडकी होगा। उससे श्रीपाल राजा के समदी राजापो की जिसका घरेलू नाम शायद 'संगोनी' हो और ब्याह समय परपरा का पता चल जाएगा। इसके लिए श्री प० परमा- या व्यवहार मे जिसे 'राजा मती' कहते थे, उसकी शादी नदजी शास्त्री 'जन-ग्रथ-प्रशस्ति-सग्रह' द्वितीय भाग पृष्ठ हमारे राजा श्रीपाल से हुई हो तो कोई बाधा नही पाती।